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श्री उपदेश माला गाथा ३७
जम्बूस्वामी की कथा फलतः वह घर में ही रहकर निरंतर छट्ठ (बेला) तप और पारणे में आम्बिल तप करने लगा। इस तरह लगातार १२ वर्ष तक तपस्या करके वह वहाँ से आयुष्य पूर्ण कर प्रथम देवलोक में चार पल्योपम की आयु वाला विद्युन्माली नाम का देव बना। श्रेणिक! यही विद्युन्माली देव अभी यहाँ आया था।"
इसके बाद पांचवें भव (जन्म) में विद्युन्माली देव आयु पूर्ण कर राजगृह नगर में ऋषभदत्त सेठ के यहाँ धारिणीदेवी की कुक्षि से पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। माता द्वारा स्वप्न में जम्बू (जामुन) का वृक्ष देखने से उसका नाम जम्बूकुमार रखा गया। बालक ने सभी कलाओं का अध्ययन किया। क्रमशः यौवनवय में पैर रखा। यौवन में चेहरा ऐसा दमकने लगा मानो तरुणी रूपी हिरनियों के लिए वे मोहपाश हों। उसी नगर के आठ धनाढय सेठों ने अपनी-अपनी कन्या का जम्बूकुमार के साथ विवाह निश्चित किया अर्थात् संबंध तय किया।
- उन्हीं दिनों गणधर श्री सुधर्मास्वामी अपनी शिष्यमंडली सहित राजगृह में पधारें। राजा कोणिक उन्हें वंदनार्थ पहुँचा। सेठ ऋषभदत्त भी अपने सुपुत्र जम्बूकुमार को साथ लेकर उनके दर्शनार्थ आया। सुधर्मास्वामी की पुष्करमेघ की जलधारा के समान संसाररूपी दावानल के ताप को शांत करने वाली उपदेशधारा बरसी। उन्होंने संसार की अनित्यतता बताते हुए कहा-"जैसे , कामिनी का मन चंचल होता है, जल में पड़ता हुआ चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब चंचल होता है, मूषा (सोने को गलाने की कुंडी) में पड़ा हुआ सोना तरल और चंचल होता है; वैसे ही संसार का स्वरूप चंचल (अस्थिर) है। जैसे अपने अंगूठे को चूसने वाला बालक अपने ही मुख से निकलती हुई लार को पीकर उसमें सुख मानता है, उसी प्रकार यह जीव भी निन्दनीय विषयभोगों का पानकर उनमें सुख मानता है। लोगों की यह कैसी मूर्खता है? जिसमें से वह उत्पन्न हुआ है, उसी में आसक्त होता है; जिसका पान किया है, उसी का स्पर्श करने से खुश होता है।" इस प्रकार का वैराग्यमय उपदेश सुनकर जम्बूकुमार को संसार के भोगों से विरक्ति हो गयी। उन्होंने श्री सुधर्मास्वामी से प्रार्थना की-"गुरुदेव! संसार-सागरउत्तारिणी जैनेन्द्री दीक्षा देकर मेरा उद्धार करें।" सुधर्मास्वामी ने कहा- "देवानुप्रिय! जैसा तुम्हें सुख हो, वैसा करो; किन्तु शुभकार्य में विलम्ब न करो।" गुरुवचन सुनकर जम्बूकुमार अपने माता-पिता से दीक्षा की अनुमति लेने चल पड़े। रास्ते में राजमार्ग के एक चौराहे पर बहुत-से राजकुमार शस्त्रास्त्रचालन का अभ्यास कर रहे थे। सहसा लोह का एक गोला धम्म से जम्बूकुमार के पास आकर गिरा। जम्बूकुमार सोचने लगे-"अगर यह यंत्र का गोला मुझे आकर लग जाता तो मैं
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