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________________ ७७ अध्यात्म के प्रयोक्ता ही अपना आलम्बन बनाते थे। लाडनूं प्रवास में अचानक गुरुदेव के श्वास का वेग बढ़ गया। श्वास लेने में कठिनाई होने लगी। सभी चिन्तित हो गए। उस समय की मनःस्थिति का चित्रण करते हुए पूज्य गुरुदेव ने दूसरे दिन कहा- 'कल जब श्वास का वेग अचानक बढ़ गया तो उत्तराध्ययन के दसवें अध्ययन ‘दुमपत्तए' की अनेक गाथाएं स्मृति में उभर आईं। मैं बारबार दुमपत्तए अध्ययन की निम्न गाथा का अनुचिंतन करने लगा अरई गंडं विसूइया, आयंका विविहा फुसंति ते। विवडइ विद्धंसइ ते सरीरयं, समयं गोयम! मा पमायए॥' । गुरुदेव ने सभी साधु-साध्वियों एवं समणियों को बुलाकर उत्तराध्ययन का दसवां अध्ययन कंठस्थ करने और उसका प्रतिदिन स्वाध्याय करने की प्रेरणा दी। अनेक बार सामूहिक रूप से लयबद्ध, विराम सहित इस अध्ययन का सहगान करना सिखाया। आगम गाथा के उच्चारण का प्रशिक्षण देते हुए उन्होंने कहा- 'मैं चाहता हूं कि सभी साधु-साध्वियां आगम गाथाओं का ऐसा शुद्ध, स्पष्ट एवं लयबद्ध उच्चारण करें कि स्वयं तो उसमें आत्मलीन बनें ही साथ ही सुनने वाला भी आत्मानंद के सागर में निमज्जन करने लगे।' . ___ पूज्य गुरुदेव की तीव्र तड़प थी कि साधु-साध्वियां अधिक से अधिक आगम ग्रंथों को कंठाग्र करें। उनका मानना था कि साधना के क्षेत्र में प्रगति करने की चाह वाले व्यक्ति का प्रथम सोपान आगम-स्वाध्याय है। इस सोपान पर आरोहण किए बिना कोई भी साधक साधना के प्रासाद पर नहीं पहुंच सकता। दशवैकालिक सूत्र सीखने के लिए तो वे बार-बार प्रतिबोध देते रहते थे। जैसे अनेक शास्त्रों का पारगामी विद्वान् होने पर भी यदि व्यक्ति व्याकरणमर्मज्ञ नहीं है तो वह शब्द-मीमांसा की अवगति नहीं कर सकता, वैसे ही एक मुनि जब तक दशवैकालिक को नहीं जानता, वह अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता। प्रेरणा के प्रसंग में पूज्य गुरुदेव ने व्याकरण की महत्ता प्रकट करने वाला एक श्लोक बताया यद्यपि बहुनाधीषे, तथापि पठ पुत्र! व्याकरणम्। स्वजनः श्वजनो मा भूत्, सकलं शकलं सकृच्छकृत्॥
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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