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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी फिर इसी श्लोक को कुछ रूपान्तरण के साथ प्रस्तुत करते हुए दशवैकालिक सीखने की प्रेरणा देते हुए गुरुदेव ने फरमाया यद्यपि बहुनाधीषे, तथापि पठ दसकालियं सुत्तं। आचारोऽनाचारो, मा भूदध्यात्मविस्मृति फैन । प्रेरणा-स्रोतस्विनी को प्रवाहित रखते हुए गुरुदेव ने कहा'दशवैकालिक अध्यात्म का ऐसा व्यावहारिक ग्रंथ है, जिसमें मुनि-चर्या की सभी प्रारम्भिक बातों का ज्ञान हो जाता है। यदि आगम-स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़े तो चिंतन और व्यवहार में गंभीरता आए बिना नहीं रहेगी।' __सबके मन में स्वाध्याय की रुचि जागृत करने हेतु पूज्य गुरुदेव स्वाध्याय के नए-नए उपक्रम संघ के समक्ष उपस्थित करते रहते थे। लूणकरणसर प्रवास के दौरान फाल्गुन मास में रात्रिकालीन प्रार्थना करके गुरुदेव भीतर पधार गए। मकान का चौक काफी बड़ा था। शुक्लपक्ष की द्वादशी होने के कारण चन्द्रमा की चांदनी चारों ओर छिटकी हुई थी। गुरुदेव के मन में स्वाध्याय का एक नया प्रयोग करने की बात उभरी। उन्होंने सब संतों को पंक्तिबद्ध बैठने का निर्देश दिया। सब साधु छज्जे के नीचे बैठ गए। गुरुदेव ने सबको संबोधित करते हुए कहा- 'आज मैं एक स्वाध्याय-शिविर का प्रयोग करना चाहता हूं। सब साधु स्वाध्याय करें और कम से कम एक हजार गाथाओं की स्वाध्याय किए बिना अपने स्थान से नहीं उठे। एक हजार से अधिक स्वाध्याय करने वाले को प्रत्येक सौ गाथा पर एक परिष्ठापन (कल्याणक) पारितोषिक रूप में दिया जाएगा। स्वाध्याय समवेत भी चला और कुछ साधुओं ने अलग से भी स्वाध्याय करना प्रारम्भ किया। स्वाध्याय से सारा वातावरण सुंदर बन रहा था। उस प्रतियोगिता में उनतीस साधु संभागी बने। उन्होंने पचास हजार गाथाओं की स्वाध्याय कर गुरुदेव से पारितोषिक प्राप्त किया। उस दिन स्वाध्याय में संभागी सभी संत अनिर्वचनीय आनंद में डुबकी लगाने लगे। सुदूर यात्रा के दौरान अनेक ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया जा सकता है, जब प्राकृतिक प्रकोप होने पर गुरुदेव ने समूचे परिपार्श्व को स्वाध्यायमय बना दिया। __उनकी स्वाध्याय की प्रेरणा देने की विविधता लोगों का ध्यान आकृष्ट करती थी। यही कारण था कि कभी स्वाध्याय नहीं करने वाले
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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