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________________ अध्यात्म के प्रयोक्ता मुनि जीवन के ११ वर्षों में उन्होंने २० हजार गाथाओं को कंठस्थ किया, जो आज एक आश्चर्य का विषय है। जीवन के सांध्यकाल में भी उन्हें संस्कृत, प्राकृत या हिन्दी का कोई नया श्लोक पढ़ने या सुनने को मिलता तो वे तत्काल उसे डायरी में नोट करके कंठस्थ कर लेते। आचार्य पद का गुरुतर दायित्व निभाते हुए भी उन्होंने सैकड़ों गाथाएं कंठस्थ कीं। 'शान्तसुधारस' जैसा ग्रंथरत्न उन्होंने वि. सं. २००० में सीखा। एक दिन संतों ने श्रीचरणों में जिज्ञासा प्रस्तुत की- 'आचार्य बनने के बाद आपने कैसे कंठस्थ किया?' गुरुदेव ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया- 'कंठस्थ करने में अवस्था और दायित्व का क्या संबंध? लगन और उत्साह होना चाहिए। लगन हो तो कभी और किसी भी अवस्था में सीखा जा सकता है।' प्रेरणा देने के लिए साध्वी सूरजकुमारीजी (छोटी खाटू) का उदाहरण देते हुए कहा- 'साध्वी सूरजकुमारी को आंखों से दीखता नहीं है, पूरा शरीर गठियावात से पीड़ित है फिर भी एक-एक पद सुनकर उसने व्यवहार बोध और अर्हत्वाणी सीख ली है। कंठस्थ करने में सबको उत्साह रखना चाहिए, जिससे बुद्धि पैनी बनी रहे, अन्यथा बुद्धि को भी जंग लग जाता है।' __ स्वाध्याय का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है-शुद्ध उच्चारण। जिसे प्राचीनकाल में संहिता कहा जाता था। पूज्य गुरुदेव उच्चारणशुद्धि पर बहुत ध्यान देते थे। वे अनेक बार कहते थे कि यदि कोई मेरे सामने अशुद्ध उच्चारण करता है तो मेरे कानों में शूल की भांति खटकता है। बाल मुनियों, मुमुक्षु बहिनों एवं समणीजी को वे प्रतिदिन उच्चारणशुद्धि का अभ्यास करवाते थे। कभी-कभी तो एक ही शब्द का वे तब तक उच्चारण करवाते रहते, जब तक उच्चारण पूर्ण शुद्ध न हो जाए। इस क्रम में कभी-कभी एक ही शब्द की दस-बीस बार पुनरावृत्ति हो जाती। अनेक बार उनको निवेदन किया जाता कि आपका बहुमूल्य समय महत्त्वपूर्ण कार्यों में लगना चाहिए। यह कार्य तो कोई भी कर सकता है। इस बात का प्रत्युत्तर देते हुए वे कहते- 'यह भी स्वाध्याय का एक क्रम है। क्या करूं मैं अपने सामने किसी को देखता हूं तो मुझसे पूछे बिना नहीं रहा जाता।' यह इतिहास का विरल उदाहरण है कि किसी आचार्य/अनुशास्ता ने अपने शिष्यों की उच्चारणशुद्धि पर इतनी शक्ति और समय का नियोजन किया हो।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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