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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ७० भी कर्णकट लगता है। ऐसे लोगों को उपदेश देने के संदर्भ में उनका मंतव्य काव्य की भाषा में पठनीय है• जो कोई चावे तो उण नै, हित उपदेश सुणा। - नहिं तो मौन राख तू भाई, मत ना जीभ चला। • हित शिक्षा यदि सुन कोई कोपै, तो तूं रीस न ल्या। करसी जिसी आगलो भरसी, तू मत मन मुरझा॥ एक इस्लामी कहावत है कि मुख से निकलने वाले हर शब्द को तीन फाटकों से होकर बाहर निकालना चाहिए। प्रथम फाटक पर पूछा जाए- 'क्या यह सत्य है ?' दूसरे फाटक पर पूछा जाए- 'क्या यह आवश्यक है ?' तीसरे फाटक पर पूछा जाए- 'क्या यह ठीक है?' पूज्य गुरुदेव मुंह से निकलने वाले हर वाक्य को तीन फाटक पर तो प्रश्न पूछते ही थे। वे चौथे फाटक पर फिर एक प्रश्न पूछते थे- 'क्या यह प्रासंगिक है?' इन चार फाटकों से उत्तरित होकर निकलने वाली उनकी वाणी इतनी परिष्कृत, हृदयग्राही और अमियपगी होती कि न सुनने वाला अघाता और न ही बोलने के बाद उन्हें कभी पश्चात्ताप का अनुभव होता। अनेक बार देखा गया कि उनकी कड़ी से कड़ी बात को भी लोग इतनी प्रसन्नता से सुनते कि मानो उन्हें जीवन-विकास का कोई राज प्राप्त हो रहा हो। "हे सागर, तेरी भाषा क्या है ?, 'अनंत' प्रश्न की भाषा, हे आकाश, तेरे उत्तर की भाषा क्या है?, 'अनंत' मौन की भाषा"॥ रविन्द्रनाथ टैगोर की उक्त काव्य-पंक्तियां पूज्य गुरुदेव के व्यक्तित्व से बहुत साम्य रखती हैं। अनेक बार देखा, सुना और अनुभूत किया जाता कि व्यक्ति अनेक जिज्ञासाओं को लेकर पूज्य चरणों में उपस्थित होते पर उनके आभामण्डल के घेरे में प्रवेश करते ही उनकी सारी समस्याएं स्वतः समाहित हो जाती थीं। गुरुदेव की दृष्टि में दूसरों को बाधा पहुंचे वैसा बोलना भी वाणी का दुरुपयोग है। उनके जीवन का यह घटना प्रसंग इसी वैशिष्ट्य का स्पष्ट निदर्शन है। कानोड़ गांव से विहार कर पूज्य गुरुदेव आगे पधार रहे थे।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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