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________________ ६९ . अध्यात्म के प्रयोक्ता सकता है ? इत्यादि प्रश्नों के संदर्भ में वागगुप्ति की महत्ता को समझकर उसके अनेक प्रयोग किए जा सकते हैं।' - जो नेता समय पर मौन रहना नहीं जानता, वह अपने अनुयायियों के मन में श्रद्धाभाव उत्पन्न नहीं कर सकता। दूसरों के प्रति अभद्र या आक्षेपात्मक वचन बोलने वाला स्वयं अपनी अभद्रता को प्रकट करता है। यद्यपि विरोध या प्रतिकूलता की स्थिति में मौन रहना अत्यन्त कठिन है पर पूज्य गुरुदेव को यह वरदान उनकी आत्मशक्ति से स्वतः प्राप्त था। समन्वय की साधना के लिए पूज्य गुरुदेव ने बहुत सहा। मौन की बहुत बड़ी साधना की। उनके मौन ने विरोध को भी अनुकूलता में ढाल दिया। मुंबई में हुए विरोध के समय मनःस्थिति का चित्रण उनकी डायरी के पृष्ठों में पठनीय 'आज व्याख्यानोपरांत मुंबई समाचार पत्र के प्रतिनिधि मि. त्रिवेदी आए। उन्हें प्रथम संपादक सोरावरजी भाई ने भेजा था। हमारा विरोध क्यों हो रहा है? उसे वे जानना चाहते थे और वे यह भी जानना चाहते थे कि एक ओर से इतना विरोध और दूसरी ओर से इतना मौन। आखिर क्या कारण है?' * 'आज मुंबई समाचार में एक मुनिजी का बहुत बड़ा लेख आया है। आक्षेपों से भरा हुआ है । भिक्षु-स्वामी के पद्यों को विकृत रूप में प्रस्तुत किया गया। जघन्यता की हद हो गई। पढ़ने मात्र से आत्मप्रदेशों में कुछ गर्मी आ सकती है। औरों को गिराने की भावना से मनुष्य क्या-क्या कर सकता है, यह देखने को मिला। उसका प्रतिकार करना मेरे तो कम जंचता है। आखिर इस काम में (औरों को नीचा करने के काम में) हम कैसे बराबरी कर सकते हैं ? यह काम तो जो करते हैं, उन्हीं को मुबारक हो। अलबत्ता स्पष्टीकरण करना जरूरी है। देखें, किस तरह होगा? इधर में विरोधी लेखों की बड़ी हलचल है। दूसरे लोग उनका सीधा उत्तर दे रहे हैं। लोग उन्हें घृणा की दृष्टि से देख रहे हैं । अपना मौन बड़ा काम कर रहा है।' गुरुदेव ने अपने जीवन से यही शिक्षा सबको दी कि पहले सहो फिर उचित लगे तो कहो। अहंकारी और आग्रही आदमी को हित उपदेश
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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