________________
६३
अध्यात्म के प्रयोक्ता अस्पताल चलकर पट्टा खुलवाना है। पुत्र को आश्चर्य हो रहा था पर कोठारीजी को गुरुदेव के मुख से सुने मंगलमंत्र पर पूरी आस्था थी। पुत्र ने हठपूर्वक कहा- 'एक महीने का पट्टा बंधा है अभी तो ४-५ दिन भी नहीं हुए हैं। आप कुछ दिन और ठहर जाएं। मेरे अनुरोध को स्वीकार करें कि पहले स्क्रीन करवा लें, फिर पट्टा खुलवाएं।' कोठारी जी बोले- 'पहले पट्टा खुलवा लें फिर स्क्रीन करवा लें। यदि ठीक नहीं होगा तो पुनः पट्टा बंधवा लेंगे।' पट्टा खोला गया। ऑपरेटर ने एक्सरे मशीन चलाई। देखा कि हड्डी क्रेक है ही नहीं। पूज्य गुरुदेव के मुख से सुने मंगल मंत्र का चमत्कार देखकर उनका पुत्र आश्चर्यचकित रह गया।
___ सामान्यतया किसी मंत्रपद का तन्मयता से बार-बार उच्चारण जप माना जाता है। पूज्य गुरुदेव ने अपने लम्बे साधनाकालीन अनुभव से जप को एक नयी परिभाषा दी, जो अनेक स्वाध्यायप्रेमियों के लिए आह्लादकारक है। वे कहते हैं- 'दो घंटे मुद्रा विशेष में अवस्थित होकर किसी मंत्र की साधना करना जप है तो घंटे भर तन्मय होकर स्वाध्याय करना, जनता के बीच बोलना, उसे तत्त्व-ज्ञान देना भी जप है।'
- पूज्य गुरुदेव की जप-साधना अनेक लोगों को जप की दिशा में प्रस्थित करेगी तथा आन्तरिक शक्ति के विस्फोट में सहायक बनेगी, ऐसा विश्वास है। मौन-साधना
भाषा व्यक्तित्व का आईना है। कौन व्यक्ति किस भाषा में बोलता है, इसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का अंकन किया जा सकता है। मनुष्य के पास अपने अन्तर्भावों को प्रकट करने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है- वाणी। बिना वाणी के सामाजिक व्यवहार नहीं चल सकता। भावसंप्रेषण के इस महत्त्वपूर्ण साधन का सम्यक् उपयोग करना बहुत बड़ी कला है। विवेकरहित मौन और संभाषण दोनों ही साधना में बाधक हैं। साधक को इस कला में अभिष्णात होना आवश्यक है कि कब बोलना चाहिए और कब मौन रहना चाहिए। पूज्य गुरुदेव इस प्रश्न का समाधान करते हुए कहते थे- 'बोलते-बोलते थक गए हो तो मत बोलो। मौन करते-करते थक गए हो तो सम्यक् बोलो।'