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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी वाला है, क्या यह बात सत्य है ?' बाल मुनियों ने अपनी बुद्धि के अनुसार उत्तर देते हुए कहा- 'केवल नमस्कार मंत्र से तो सब पापों का नाश नहीं होता।' गुरुदेव ने प्रतिप्रश्न किया- 'क्यों नहीं होता?' गुरुदेव के इस प्रश्न का उत्तर बालमुनि नहीं दे पाए। गुरुदेव ने उनके माध्यम से सभी साधुसाध्वियों को संबोध देते हुए कहा- 'हमें शास्त्रीय वाक्यों पर शंका नहीं करनी चाहिए। यह महामंत्र है, आगम में प्रतिपादित है अतः इसमें कल्पनां या अतिशयोक्ति जैसी कोई बात नहीं है। जप का सही फल प्राप्त करने के लिए शर्त एक ही है कि उसका सही प्रयोग हो। 'सब रोगों की एक दवा', 'सौ बीमार : एक अनार' आदि जो जनश्रुतियां हैं, वे अर्थहीन तो नहीं हो सकतीं। एक ही दवा कई रोगों को मिटा सकती है पर तभी जब चिकित्सक को उसके प्रयोग की सब विधियां ज्ञात हों। किस बीमारी में दवा का प्रयोग कैसे और किस पथ्य के साथ हो, यह ध्यान दिए बिना बढ़िया औषध भी यथेष्ट लाभ नहीं देती, वैसे ही किस प्रयोजन के लिए, किस विधि से नमस्कार महामंत्र का प्रयोग हो, इस तथ्य की जानकारी के अभाव में जपप्रयोग पर संदेह करना उचित नहीं होता।' ____ मंत्र एवं साधना की सिद्धि से गुरुदेव के नाम और वाणी में इतना चमत्कार पैदा हो गया था कि हजारों व्यक्ति उनके नाम-स्मरण मात्र से कष्ट से उबर जाते थे। प्रतिदिन सैकड़ों व्यक्ति उनके मुख से मंगलमंत्र सुनते और जीवन में अकल्पित चमत्कार का अनुभव करते थे। वि.सं. २०२८ का चातुर्मास लाडनूं में था। गिरने के कारण सदासुखजी कोठारी के हाथ के अंगूठे में फैक्चर हो गया। जैन विश्व भारती के एक आवश्यक नोटिस पर उन्होंने बाएं हाथ से हस्ताक्षर कर दिए। नोटिस प्राप्त करने वालों को हस्ताक्षर संबंधी संशय हो गया तो कोठारीजी ने स्पष्टीकरण दिया। उन्होंने सोचा कि गुरुदेव के विराजने के काल में यदि अंगूठा ठीक नहीं हुआ तो अनेक कार्यों में कठिनाई आ सकती है। कोठारीजी दृढ़ आस्था के साथ गुरुदेव के पास पहुंचे और मंगल मंत्र सुनाने के लिए निवेदन किया। गुरुदेव ने मंगल मंत्र सुनने का कारण पूछा। उन्होंने कहा- 'मैं हाथ का पक्का पट्टा उतरवा सकू, इसलिए मंगलपाठ सुनने आया हूं।' गुरुदेव उनकी बात सुनकर मुस्कराने लगे और उत्तराभिमुख होकर मंगलपाठ सुना दिया। कोठारीजी ने अपने पुत्र विजयसिंह को आदेश दिया कि अब सीधे
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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