SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ६० मिरगी के दौरे आने लगे। दौरे आने पर पूरा शरीर ऐंठ जाता। जीभ बाहर निकल जाती। गर्दन मुड़ जाती। दिमाग पर असर होने से स्मरणशक्ति भी कमजोर हो गयी। अनेक स्थानों पर चिकित्सा करवाने पर भी लाभ नहीं हुआ। ऐलोपैथिक दवा से उनकी हालत और अधिक गंभीर हो गयी। _ वि.सं. २०३० में उन्होंने पूज्य गुरुदेव के दर्शन किए। जैसे ही दर्शन किए, वहीं दौरा आ गया। उनका भाई उनको उठाकर ले गया। दूसरे दिन जब उसने गुरुदेव के दर्शन किए तो गुरुदेव ने फरमाया- 'तमको बहुत भयंकर रूप से दौरा आता है। ऐसे दौरे कितने वर्षों से आ रहे हैं?' बहिन ने कहा- 'लगभग २० वर्षों से मैं इससे परेशान हूं। देश-विदेश की अनेक दवाइयां लीं लेकिन कोई अंतर नहीं आया।' गुरुदेव ने करुणा बरसाते हुए कहा- 'प्रतिदिन 'ओम् शांति' का जाप करो फिर बताना कि दौरे आते हैं या नहीं?' घर आते ही बहिन ने छह महीने के लिए दवा के त्याग कर दिए और रात-दिन 'ओम् शांति' का जाप करने लगी। जप के प्रभाव से वह बहिन बिल्कुल स्वस्थ हो गयी। बहिन का कहना है कि जप तो पहले भी बहुत किए लेकिन गुरुदेव के मुख से प्राप्त मंत्र की शक्ति अनेक गुणा बढ़ गयी।' दिल्ली का प्रसंग है। प्रभुदयालजी डाबड़ीवाल वहां के प्रतिष्ठित व्यापारी थे। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि राजनीति में सक्रिय भाग न लेने पर भी अनेक राजनेता उनके पास आते और अपनी समस्या का समाधान प्राप्त करते थे। एक समय आया जब डाबड़ीवालजी बीमार हो गए। वृद्धावस्था में उनको पक्षाघात हो गया। उस समय लोगों का आवागमन भी कम हो गया। हमेशा लोगों की भीड़ से घिरा व्यक्ति यदि एकाकी हो जाए तो यह स्थिति उसे सह्य नहीं होती। यही स्थिति उनकी हुई। एकाकीपन उनको काटने लगा और मानसिक रूप से वे दःखी हो गए। पूज्य गुरुदेव दिल्ली प्रवास में उनको दर्शन देने पधारे। उनकी मानसिक पीड़ा को देखकर गुरुदेव ने उनको मंत्र का जाप करने का परामर्श दिया। उन्होंने पूरी निष्ठा से मंत्र का जाप किया। वे लगभग पूरे-पूरे दिन उस मंत्र का जाप करते। मंत्र के जाप से उनके जीवन का खालीपन दूर हो गया। उनका मन प्रसन्नता और शक्ति से आप्लावित हो गया। मंत्रदाता गुरु के प्रति उनका मानस अहोभाव से भर गया।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy