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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी प्रकृति भी पूर्णतया उनके अनुकूल बन जाती थी। २७ मई, १९८२ का प्रसंग है। सुधरी में पूज्य गुरुदेव आचार्य भिक्षु के प्रति अपनी आस्था और श्रद्धा व्यक्त कर रहे थे। श्रोता उनके वचनामृत का पान कर अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव कर रहे थे। अचानक बादलों ने कुछ बूंदें बरसाईं। उस समय पौने बारह बज रहे थे। गुरुदेव के प्रवचन के प्रवाह को देखकर ऐसा लगता था कि आधा घंटा प्रवचन और चलता लेकिन प्रकृति का व्यवधान. देखकर गुरुदेव ने घड़ी की ओर दृष्टिपात किया। गुरुदेव ने फरमाया"कार्यक्रम का समय पूरा हो गया था। मैं नियमित समय का अतिक्रमण न करूं, इसलिए ये बूंदें गिरी हैं। गुरुदेव जब अपने आवास स्थल पर पहुंचे, तब आसमान साफ हो गया था तथा धूप निकल आयी थी। पिछले कई महीनों से गुरुदेव ठीक बारह बजे जप-साधना का प्रयोग करते थे। लगता है समय का अतिक्रमण न हो इसलिए प्रकृति ने यह उपक्रम किया।" पूज्य गुरुदेव किसी भी नए कार्य के शुभारम्भ में मंगल रूप में मंत्र-जाप अवश्य करते थे। कभी-कभी विशेष अवसरों पर वे मंत्रों का विशेष प्रयोग भी करते थे। उत्तरप्रदेश की यात्रा में मुनि मिलापचन्दजी को लू लग गयी। लू के प्रभाव से मूत्रावरोध हो गया और वे अचेत जैसे हो गए। उनके अग्रगण्य संत जसकरणजी भी गर्मी के कारण अस्वस्थ हो गए। उस रात दोनों मरणासन्न जैसी स्थिति में थे। मुनि मिलापचन्दजी और जसकरणजी अपनी अंतिम स्थिति जानकर गुरुदेव से एक दूसरे की समाधि का निवेदन करने लगे। उस स्थिति में गुरुदेव ने अपने रजोहरण से एक धागा तोड़ा और उसे मंत्रित करके मुनि मिलापचन्दजी के हाथों में बांध दिया। थोड़ी देर बाद ही मुनि मिलापचन्दजी का मूत्रावरोध खत्म हुआ और वे स्वस्थता का अनुभव करने लगे। सभी लोग गुरुदेव के इस प्रयोग से चमत्कृत हो गए। सन् १९८४ में नवरात्रि के दौरान उन्होंने जप का विशेष अनुष्ठान प्रारम्भ किया। चार मास तक निरन्तर एक घंटा अविचल रूप से जप का प्रयोग चला। जप के इस प्रयोग में एक ही प्रकार का अन्न तथा नौ द्रव्य से अधिक पदार्थों का सेवन नहीं किया। हिसार एवं जयपुर के एकांतवास में भी गुरुदेव ने जप के विशेष अनुष्ठान किए। जयपुर में किए जप-अनुष्ठान
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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