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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी जहां शरीर-प्रतिबद्धता है, बीमारी को प्रश्रय दिया जाता है, वहीं वे टिकेंगी। यदि व्यक्ति शरीर से निरपेक्ष हो जाए, कायोत्सर्ग की साधना साध ले तथा बीमारी को इज्जत और आदर न दे तो बीमारी आएगी पर दुःख नहीं देगी। उसकी शक्ति कमजोर हो जाएगी। मेरी दृष्टि में कायोत्सर्ग बीमारी से लड़ने की सबसे बड़ी शक्ति है।'
- पीपाड़ का घटना प्रसंग है। जेठ का महीना था। आंधी-तूफान तेजी से चल रहे थे। गर्मी बहुत तेज पड़ रही थी। गुरुदेव का सारा शरीर फुसियों से भर गया। शरीर रक्ताभ हो गया। खुजलाहट भी होने लगी। संत गुरुदेव के लिए हेजलीन लाए और निवेदन किया-'यह लगाने से आपको आराम रहेगा।' गुरुदेव ने मुस्कुराते हुए फरमाया-'भाई! यह तो अमीर लोगों की दवा है। हम तो अकिंचन फकीर हैं। हमारे ऐसी दवाइयां काम नहीं आ सकतीं। हमारी दवा तो जब वर्षा आएगी और ठंडी हवा चलेगी, तब अपने आप हो जाएगी।' देह के पोषण में लगा व्यक्ति ऐसी बात सोच ही नहीं सकता। काया के प्रति ममत्व का उत्सर्ग करने वाला साधक ही शरीर के प्रति इतना निरपेक्ष हो सकता है।
____ कायोत्सर्ग का साधक इन्द्रिय-सुखों से ऊपर उठकर निरपेक्ष सुख में रमण करता है। वह शरीर की प्रतिबद्धता से मुक्त हो जाता है। उसका अधिकांश समय आत्मा की सन्निधि में बीतता है। वोसठ्ठचत्तदेहे' इस आगम पद को स्मृति में रखते हुए पूज्य गुरुदेव ने शरीर की सारसंभाल में अधिक रस नहीं लिया। वे मानते थे कि हमारा ध्यान जितना देहाश्रित होगा, शरीर पर टिकेगा, उतनी ही चंचलता बढ़ेगी। पूज्य गुरुदेव ने कायोत्सर्ग की साधना को व्यावहारिक बनाने का प्रयत्न किया अतः सामान्य व्यक्ति भी उनके इस प्रयोग से लाभान्वित होकर अपने जीवन में रूपांतरण घटित कर सकता है। जप-साधना
___ चंचल मन को स्थिर एवं केन्द्रित करने में जप सर्वोत्तम उपाय है। ध्येय को स्पष्ट करने एवं आंतरिक शक्ति को बढ़ाने में जप सहज एवं सशक्त साधन है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम मंत्रसिद्ध साधक थे। उनका मंतव्य था कि साधना का सरलतम उपक्रम है- जप। प्रभुदर्शन एवं