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________________ अध्यात्म के प्रयोक्ता प्रेक्षाध्यान का प्रयोग प्रारम्भ होने से पूर्व भी वे कायोत्सर्ग की साधना के प्रति सजग थे। वे स्वयं स्वीकार करते थे-'जिस समय हमारे संघ में प्रेक्षाध्यान का प्रयोग शुरू ही नहीं हुआ था, उस समय भी मैं शिथिलीकरण, खेचरीमुद्रा आदि का प्रयोग करता था। दिन में तीन-चार बार प्रवचन करने के बाद थकान का अनुभव होने पर भी मैं घूमता-फिरता कायोत्सर्ग किया करता था।' गुरुदेव का अनुभव था कि कायोत्सर्ग औषधि है, अनुपान है और स्वास्थ्य का राजमार्ग है। इस पर चलने वाला कोई भी व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है।' सामान्य व्यक्ति छोटी-सी वेदना में बेचैन होकर हिम्मत खो बैठता है किन्तु कायोत्सर्ग की साधना अस्वास्थ्य में भी प्रसन्नता की अनुभूति को कम नहीं होने देती। कायोत्सर्ग साधना की ही फलश्रुति थी कि गुरुदेव किसी भी शारीरिक वेदना की स्थिति में उदविग्न नहीं हए। वे हर परिस्थिति को सहज रूप से स्वीकार करते थे। सोंडागांव में गुरुदेव को खांसी का प्रकोप हो गया। संतों ने निवेदन किया-'गुरुदेव! खासी आती है।' गुरुदेव ने काकु ध्वनि में उत्तर दिया-'खासी कहां है, थोड़ी-थोड़ी आती है। खासी का एक अर्थ अधिक भी होता है।' यह अर्थ सुनकर सारे वातावरण में उन्मुक्त हास्य बिखर गया। बीमारी को विनोद के रूप में स्वीकार करना जीवन की एक बहुत बड़ी कला है, जो बिना कायोत्सर्ग की साधना के संभव नहीं है। . कुछ लोग शिथिलीकरण, शवासन और कायोत्सर्ग को एक मानते हैं लेकिन इस संदर्भ में गुरुदेव का अभिमत था कि कायोत्सर्ग का अर्थ शिथिलीकरण नहीं, अपितु जागरूकता एवं स्थिरता के साथ शरीर और चैतन्य के भेद का अनुभव करना तथा शरीर के प्रति होने वाली मूर्छा और ममत्व का त्याग करना है। कायोत्सर्ग सधने के बाद शरीरगत एवं मनोगत सुख-दुःख की अनुभूति नहीं होती। — सन् १९९६ के लाडनूं प्रवास में 'महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र' प्रवचनमाला का आयोजन रखा गया। प्रवचनमाला के दौरान एक दिन का विषय था-'कायोत्सर्ग और स्वास्थ्य'। पूज्य गुरुदेव ने कायोत्सर्ग का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कहा-'बीमारियां सबको सूंघती हैं किन्तु
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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