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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ५४ की सारी प्रायश्चित्त-विधि कायोत्सर्ग पर आधारित है। कायोत्सर्ग का वाच्यार्थ स्पष्ट करते हुए पूज्य गुरुदेव ने कहा-'कायोत्सर्ग का अर्थ हैशरीर का व्युत्सर्ग, शरीर की सार-संभाल का अभाव, शरीर के प्रति ममत्व का विसर्जन तथा भेद-विज्ञान की चेतना का विकास।' कायोत्सर्ग के द्वारा शरीर और चेतना के संयोग का स्पष्ट अनुभव किया जा सकता है। यही वह क्षण होता है, जब अहंकार और ममकार की ग्रंथि का भेदन होता है। कायोत्सर्ग के बारे में पूज्य गुरुदेव का अनुभव था कि सुरक्षा कवच या बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने वाले को जैसे गोली लगने का भय नहीं होता, उसी प्रकार गहरे कायोत्सर्ग में जाने के बाद प्रतिकूल परिस्थितियों का प्रभाव क्षीण हो जाता है। पूज्य गुरुदेव के जीवन में अनेक ऐसे प्रसंग घटित हुए जो इस अनुभव को सत्यापित करने वाले हैं। एक बार डॉक्टर घोड़ावत ने गुरुदेव के रक्तचाप का निरीक्षण करके कहा-"आपका ब्लडप्रेशर अधिक है।" गुरुदेव ने कहा-'डॉक्टर साहब! थोड़ी देर ठहरो मैं अभी कायोत्सर्ग करता हूं, उसके बाद आप पुनः निरीक्षण करना।' पांच-सात मिनिट कायोत्सर्ग के बाद डाक्टर ने पुनः निरीक्षण किया। रक्तचाप में कमी आ गयी। डॉक्टर साहब कायोत्सर्ग के प्रभाव को देखकर विस्मित हो गए। कायोत्सर्ग से सम्बन्धित एक और अनुभव जो उन्हीं की भाषा में पठनीय है-"एक शाम मुझे बेचैनी का अनुभव हुआ। प्रतिक्रमण के बाद लेटा पर बेचैनी कम नहीं हुई। मुनि मधुकर, महाश्रमण मुदित और आचार्य महाप्रज्ञ आदि सब आ गए। रात का समय था। मधुकरजी ने मसाज शुरू की। सोचा, आज रात भर बैठना पड़ेगा। अचानक कायोत्सर्ग करने की इच्छा हुई। मैंने कहा-'मसाज छोड़ो, अब मुझे कायोत्सर्ग करने दो। महाश्रमण ने कायोत्सर्ग का प्रयोग कराया। मैं गहरे कायोत्सर्ग में चला गया। रात को अच्छी नींद आ गई। प्रात:काल उठा तो आगम का वाक्य स्मृति में आ गया-'काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सव्वदुक्खविमोक्खणं।' पूज्य गुरुदेव कायोत्सर्ग का अभ्यास नियत काल के लिए ही नहीं करते, निरन्तर चालू रखते थे। उनकी कायगुप्ति की साधना इतनी सधी हुई थी कि ४-५ घंटे एक आसन में बैठने के बावजूद भी वे अपने आसन से विचलित नहीं होते थे। उनकी कायिक स्थिरता सदैव बनी रहती थी।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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