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________________ अध्यात्म के प्रयोक्ता एक रूखी चपाती, केवल उबली सब्जी एवं थोड़े से चावल के अतिरिक्त गुरुदेव कुछ भी ग्रहण नहीं करते थे। साधु-साध्वियों का आग्रह रहा कि इस प्रयोग से शारीरिक दुर्बलता आ सकती है अतः इस प्रयोग को सम्पन्न किया जाए पर अच्छा और उपयोगी मानकर गुरुदेव एक माह तक अनवरत उस प्रयोग को चलाते रहे। _ अस्वास्थ्य की स्थिति में भी पूज्य गुरुदेव खाद्य-संयम के प्रयोग को ही प्रमुखता देते थे। सन् १९६१ में गुरुदेव को प्रतिश्याय हो गया। संतों ने औषधि के लिए आग्रह किया। किन्तु गुरुदेव ने पूज्य कालूगणी द्वारा निर्दिष्ट प्रयोग प्रारम्भ किया। तीन दिन तक केवल मूंग की दाल और रूखी बाजरे की रोटी का प्रयोग किया। 'संस्मरणों के वातायन' में गुरुदेव अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं- "सहज रूप से खाद्य-संयम हो गया। मानसिक प्रसन्नता रही। मैंने प्रतिश्याय को वरदान माना। स्वास्थ्य में भी कुछ सुधार हो गया।" खाद्य-संयम के ऐसे अनेक प्रयोग गुरुदेव समय-समय पर करते रहते थे। • खाद्य-संयम के साथ तपस्या के विविध प्रयोग भी उनके जीवन में चलते रहे। प्रारंभ के अनेक वर्षों में गुरुदेव प्रतिवर्ष १० प्रत्याख्यान का प्रयोग करते रहे। गुरुदेव का अनुभव रहा कि इस छोटी सी तपस्या में बड़ी आत्मशांति मिलती है तथा विशेष रूप से किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। तेले (तीन दिन का उपवास) का प्रथम प्रयोग गुरुदेव ने आगमसंपादन का कार्य प्रारंभ करने से पूर्व किया। इस अनुष्ठान में गुरुदेव के साथ चतुर्विध संघ ने भी अपनी शक्ति का परीक्षण किया। हिसार में सत्ताईस दिन के एकान्त अनुष्ठान का समापन भी गुरुदेव ने तेले से किया। उपवास का प्रयोग तो गुरुदेव करते ही रहते थे। उनकी दृष्टि में उपवास का अर्थ केवल भूखे मरना नहीं, अपितु आत्मा के सन्निकट रहना था। सन् १९८१ में गुरुदेव की सन्निधि में राष्ट्रीय स्तर पर जयाचार्य निर्वाण शताब्दी का विराट् आयोजन मनाया गया। इस अवसर पर गुरुदेव ने प्रति माह दो उपवास करने का संकल्प लिया, जो तीन साल तक अनवरत चला। लगभग ७० वर्ष की उम्र में उपवास के दिन उन्होंने पन्द्रह-सोलह
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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