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________________ ४८ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी अधिक खा लिया। दूसरों की दृष्टि में मेरा खाद्य-संयम काफी पुष्ट था, किन्तु मुझे उससे संतोष नहीं था। इसी दृष्टि से मैं कुछ प्रयोग कर रहा था।' __ सन् १९८२ में पूज्य गुरुदेव ने खाद्य-संयम के अनेक उपक्रम प्रारम्भ किए। इस वर्ष के दौरान गुरुदेव लाडनूं से राणावास चातुर्मास हेतु पधार रहे थे। बोरावड़ में अक्षय तृतीया के भव्य आयोजन के अवसर पर गुरुवर ने चीनी एवं गुड़ से बनी सब चीजों का परिहार कर दिया। तेरह वर्ष तक उनका यह प्रयोग अखंड रूप से चला। सामान्य मनोबल वाला व्यक्ति चीनी एवं चीनी से बनी चीजों के परिहार की बात सोच भी नहीं सकता। लोग वृद्धावस्था में पाचन शक्ति कमजोर हो जाने पर भी मिठाई छोड़ना नहीं चाहते। अनेक व्यक्ति तो मधुमेह जैसी खतरनाक बीमारी से पीड़ित होने पर भी मिठाई के प्रति आसक्ति को नहीं छोड़ पाते। वे इंसुलिन के इंजेक्शन या टेबलेट लेकर भी अपनी इस आसक्ति को पूरा करते हैं। - राणावास चातुर्मास में गुरुदेव ने चार मास के लिए दूध का परिहार किया। इस प्रयोग को बालोतरा और जोधपुर चातुर्मास में दो मास तथा आमेट में एक मास के लिए फिर पुनरुक्त किया। सावन मास में दूध न लेने का प्रयोग पिछले कई सालों से चल रहा था। प्रतिदिन जिस चीज को लेने की प्रकृति हो अथवा जो दैनिक जीवन के लिए अनिवार्य हो उसे एक साथ छोड़ देना अप्रतिबद्धता और अनासक्ति का महान् निदर्शन है। कई वर्षों तक गुरुदेव को आहार परोसने का सौभाग्य मुनि मधुकरजी को प्राप्त हुआ। वे गुरुदेव की अनासक्त साधना से बहुत प्रभावित हुए। उनका अनुभव है कि दो-तीन दिन लगातार किसी चीज को ग्रहण करने के बाद जब चौथे दिन वही चीज परोस दी जाती तो गुरुदेव उसे ग्रहण नहीं करते। . 'असणं असणकाले' आचारांग की इस उक्ति को उन्होंने अपने जीवन में पूर्णतया चरितार्थ किया। यही कारण है कि मध्याह्नकालीन भोजन के बाद सायंकालीन भोजन के बीच वे कुछ भी ग्रहण नहीं करते थे। आमेट चातुर्मास के आखिरी महीने में गुरुदेव ने आहार-संयम का एक विचित्र प्रयोग किया। उस प्रयोग में दूध, दही आदि विगयपरिहार के साथ चुपड़ी चपाती भी काम में नहीं ली। भोजन की मात्रा भी अत्यन्त सीमित कर दी। प्रात: थोड़ी सी आछ, मध्याह्न एवं सायं भोजन में
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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