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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी अनुभूत प्रयोग को जनता के समक्ष प्रस्तुत करता रहता हूँ क्योंकि प्रायोगिक जीवन में विश्वास हुए बिना जीवन की कला नहीं सीखी जा सकती। उनके व्यक्तिगत जीवन के प्रयोगों की एक लम्बी श्रृंखला प्रस्तुत की जा सकती है। आध्यात्मिक दृष्टि से उनके द्वारा किये गये सभी प्रयोगों की ऐतिहासिक दृष्टि से सुरक्षा नहीं हो पाई फिर भी उपलब्ध प्रयोगों का वर्णन प्रस्तुत किया जा रहा है। इनको प्रस्तुत करने का उद्देश्य इतना ही कि जनता को उनके प्रायोगिक जीवन की कुछ झलक मिल सके। इन विभिन्न प्रयोगों के पीछे गुरुदेव का एक ही दृष्टिकोण रहा- आत्मबोध, आत्म-जागरण एवं आत्म-नियंत्रण। यहाँ उनके व्यक्तिगत साधना के प्रयोगों की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं। आहार-संयम के प्रयोग साधना के साथ आहार का बहुत गहरा संबंध है। आहार जितना सात्त्विक और शुद्ध होता है, साधना के क्षेत्र में उतनी ही सहज गति हो सकती है। विषय-विरक्ति एवं मोह-विजय का प्रथम साधन है- खाद्यसंयम। इसलिए साधक खाने के लिए नहीं जीता वरन् जीने के लिए खाता है। साधारण आदमी स्वाद के लिए खाता है, वहाँ साधक भोजन को जीवन-निर्वाह का साधन मानता है। खाद्य-संयम और साधना में अविनाभावी सम्बन्ध स्थापित करते हुए गुरुदेव कहते हैं आत्म-साधना का यदि, करना हो प्रारम्भ। सुखद खाद्य-संयम करो, बन विरक्त अविलम्ब॥ उचित खाद्य-संयम बिना, गति होती अवरुद्ध। सेना सेनानी बिना, करे कहां तक युद्ध?॥ 'व्यवहार-बोध' में भी पूज्य गुरुदेव ने साधकों के समक्ष यही तथ्य प्रस्तुत किया है जीने का उद्देश्य आत्महित, साधन उसका यह तन है। .. हो इसका समुचित संपोषण, इसी दृष्टि से भोजन है॥ 'पूज्य गुरुदेव अतिमात्रा में, अधिक बार, अधिक द्रव्य खाना पसंद नहीं करते थे। उनका मंतव्य था कि अधिक द्रव्य खाने से कुछ न
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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