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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी कि प्रारम्भ में मुझे कायोत्सर्ग एवं मुद्राओं की विधि का सम्यक् ज्ञान नहीं था लेकिन किसी श्रावक ने सुझाव दिया तो अच्छा लगा। मेरे अभिमत से ये प्रयोग साधना के साथ-साथ चिकित्सा का काम भी करते हैं। लम्बे विहारों के दौरान रात को जब कभी प्यास का अनुभव होता, जीभ को उलटकर खेचरी मुद्रा करने पर ऐसा अनुभव होता मानो भीतर से अमृत का झरना फूट पड़ा हो। मैंने अपने जीवन में अनेक बार ऐसे प्रयोग किए हैं और आनंद का अनुभव किया है।" - पूज्य गुरुदेव के प्रयोगों की गुरुता का एक हेतु था-अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय। आज भौतिक शक्तियों का अंधाधुंध विकास मानव को ऊपरी चकाचौंध तो दे रहा है पर इससे दूसरे खतरे बढ़ते जा रहे हैं। मानव के भीतर एक रिक्तता पनप रही है। अंत:करण की रिक्तता को आध्यात्मिक प्रयोगों द्वारा भरा जा सकता है। पूज्य गुरुदेव के जीवन की तीव्र अभीप्सा थी कि अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय हो क्योंकि उनका मानना था कि धर्म-शून्य विज्ञान खतरनाक है और विज्ञानशून्य धर्म अंधविश्वास है अतः वैज्ञानिक को धार्मिक और धार्मिक को वैज्ञानिक बनना चाहिए। कोरी आध्यात्मिकता गुहावासी संन्यासियों के लिए उपादेय हो सकती है पर उससे हर व्यक्ति लाभान्वित नहीं हो सकता। कोरी वैज्ञानिकता वैज्ञानिकों के लिए ग्राह्य हो सकती है, पर उससे आम आदमी का काम नहीं चल सकता। आज अपेक्षा है अध्यात्म और विज्ञान के समन्वय की। क्योंकि दोनों का लक्ष्य है-सत्य की खोज में नई दिशाएं खोलना, प्रयोग करना, परीक्षण करना और निष्कर्ष निकालना।' धर्म को असाम्प्रदायिक एवं प्रायोगिक रूप देने के लिए उन्होंने जनता के समक्ष एक त्रिवेणी प्रस्तुत की- अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवनविज्ञान । इन प्रयोगों से निश्चित रूप से धर्म का ऊर्जस्वल और तेजस्वी रूप निखरकर सामने आया है। वे कहते थे–'धर्मग्रंथों एवं धर्मस्थानों में बंधा हुआ धर्म मुझे प्रिय नहीं है। मैं धर्म को लोक-जीवन में उतरा हुआ देखना चाहता हूँ।... मैं धर्म को किसी वर्ग या जाति-विशेष के लिए नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति के लिए आवश्यक मानता हूँ। मानवतावादी धर्म सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है इसलिए हमें धर्म को और अधिक नवीनता, वैज्ञानिकता, उपयोगिता एवं प्रायोगिकता के संदर्भ में प्रतिष्ठित करना है।'
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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