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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २६ अध्यात्म का सही मार्गदर्शन करने वालों की आज सर्वत्र कमी नजर आ रही है। समाज-सेवा या शारीरिक-सेवा करने वाले बहुत व्यक्ति मिल सकते हैं पर अपनी आत्मा का उत्थान करके दूसरों को सही दिशा में प्रस्थित करने वाले विरल होते हैं। महात्मा गाँधी ने एक उद्घोष दिया था कि हमें शरीर के चिकित्सक के बजाय आत्मा के चिकित्सकों की आवश्यकता है क्योंकि शरीर की चिकित्सा करने वाले डॉक्टरों की लम्बी कतार है। मनश्चिकित्सक भी सुलभ हैं पर आत्मा की चिकित्सा करने वाले दुर्लभ मिलते हैं।' पूज्य गुरुदेव आध्यात्मिक चिकित्सक थे। उन्होंने जीवन में लाखों लोगों का भाव-परिष्कार करके उनमें नये आत्मबल और आत्मविश्वास का संचार किया था। एक बार गुरुदेव की सेवा में एक नेत्र चिकित्सक उपस्थित हुआ। उसने गुरुदेव को कहा-'भारत में मैंने हजारों लोगों की आँखों का ऑपरेशन किया है, क्या इससे मुझे ईश्वर प्राप्त हो जाएगा?' गुरुदेव ने स्पष्ट उत्तर देते हुए कहा-'नेत्र-चिकित्सा करके आपने मानवीय कर्तव्यों का पालन किया है पर ईश्वर-प्राप्ति के लिए आपको अन्तशोधन करना होगा। जब तक कषाय या उत्तेजना शान्त नहीं होगी, वीतरागता का उदय नहीं होगा, तब तक ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकेगी।' इस उत्तर को सुनकर डॉक्टर का चेहरा खिल उठा। उसने कहा-'आज तक बहुत संतों के संपर्क में आया हूँ। मैंने यह जिज्ञासा उनके सामने अनेक बार रखी पर आप जैसा आध्यात्मिक मार्गदर्शक मुझे नहीं मिला। वस्तुत: आत्मिक उत्थान के लिए बाह्य क्रिया नहीं वरन् आंतरिक विशुद्धि आवश्यक है।' लाडनूं प्रवास में डॉ. आर. के विग, डॉ. कान्ता छाजेड़ एवं डॉ. अरुणा गुरुदेव की पावन सन्निधि में पहुंचे। उन्होंने गुरुदेव को निवेदन किया कि हम सुजानगढ़ नेत्र-चिकित्सा शिविर के लिए आए हए थे। यहाँ आपसे आध्यात्मिक पाथेय प्राप्त करने हेतु आए हैं। पूज्य गुरुदेव ने डाक्टरों पर एक गहरी दृष्टि डाली और प्रश्न के माध्यम से प्रतिबोध देते हुए कहा- 'आप बाह्यदृष्टि के साथ लोगों को अन्तर्दृष्टि देते हैं या नहीं?' डाक्टर लोग इस रहस्यमय प्रश्न को पकड़ नहीं पाए। उनके चेहरे पर उभरे असमंजस को देखकर गुरुदेव ने ईसामसीह के जीवन से संबंधित एक घटना सुनाते हुए कहा-'ईशु क्राइस्ट ने एक बार किसी नेत्रहीन व्याक्त को चक्षु दे दिए। उसने नेत्रों का गलत उपयोग करना शुरू कर दिया। एक
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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