________________
सार्वभौम अध्यात्म के प्रतिष्ठाता अपनी आत्मा को हटाकर यह संकल्प करो कि ऐसी भूल दूसरी बार नहीं होगी। दूसरों की आलोचना करने या सुनने में समय का अपव्यय मत करो।
किसी भी बात को पचाने की क्षमता का विकास करो। . व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के व्यामोह में न फंसकर जन-जन में
संघीय एवं आध्यात्मिक भावना भरो।
गुरुदेव केवल गोष्ठी या प्रवचन के माध्यम से ही अध्यात्म की प्रेरणा नहीं देते वरन् वे सामान्य प्रसंग को भी आध्यात्मिक प्रतिबोध का माध्यम बना लेते थे। यहाँ कुछ घटना-प्रसंगों का उल्लेख किया जा रहा है, जो उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण के स्वयंभू प्रमाण हैं
* दक्षिण यात्रा के दौरान पूज्य गुरुदेव बाहुबलीजी पधारे। पहाड़ पर चढ़ते ही बाहुबली की सौम्य एवं शान्त मूर्ति को देखकर प्रेरणा की सौसौ धाराएं उनके मुख से प्रवाहित हो उठीं-'हमने स्वेच्छा से साधना का पथ स्वीकार किया है। सामने बाहुबली की प्रतिमा से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए। जिस प्रकार यह प्रतिमा धूप, छाया, आँधी और तूफान में अविचल खड़ी है, उसी प्रकार हमें भी अपने साधना पथ पर अनवरत अविचल होकर बढ़ते रहना चाहिए। चाहे कितनी ही विपरीत परिस्थितियाँ सामने क्यों न आएं, हमें विचलित नहीं होना है।'
* मेवाड़ के एक गाँव में गुरुदेव प्रवचन कर रहे थे। स्थानाभाव के कारण कुछ भाई चौकियों पर तथा कुछ भाई नीचे गली में बैठे थे। गुरुदेव का ध्यान उबड़-खाबड़ चट्टानों पर अटक गया। प्रवचन में ही प्रेरणा देते हुए उन्होंने कहा-'कहीं ऊंची, कहीं नीची जिधर देखो उधर चट्टानें ही चट्टानें हैं। खेतों की बाड़ें पत्थर की, रास्ते भी पथरीले, कितने कठोर हैं ये पत्थर! कहीं आपके हृदय भी इतने कठोर तो नहीं हैं ? कठोर हृदय में शिक्षामृत की बूंदे नहीं टिक सकतीं इसलिए आप लोगों को ग्रहणशील बनने के लिए मृदु बनना होगा।'
मेवाड़ में आतमा गाँव पधारने पर चतुर्विध धर्मसंघ को प्रतिबोध देते हुए आपने कहा-'आज हम आतमा आए हैं। आज क्या आए हैं हम तो पहले से ही यहीं थे। आज तो वे लोग भी यहाँ पहुँच गए हैं, जो