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________________ सार्वभौम अध्यात्म के प्रतिष्ठाता सहयोग दे सकता है'। उक्त विचार उनकी जनकल्याण के प्रति तीव्र आकांक्षा को व्यक्त कर रहे हैं। वे उसी साधक की साधना को महत्त्वपूर्ण मानते थे जो स्वयं अकेला ही उत्थान के पथ पर आगे न बढ़ता हुआ औरों को भी विकास एवं प्रगति की राह पर आगे बढ़ाने की प्रेरणा दे। उनका कवि मानस इसी संकल्प को दोहराता रहता था सदा मनोबल बढ़े हमारा, सदाचार पनपाने में। रात्रिंदिन हो लगन हमारी, तरने और तराने में। गुरुदेव श्री तुलसी समय-समय पर गोष्ठियों के माध्यम से संघ एवं समाज के सदस्यों में साधना की विशेष रुचि जागृत करते रहते थे। उनकी प्रेरणा इतनी मार्मिक एवं वेधक होती थी कि हर साधक के हृदय में ऊर्ध्वारोहण की अभीप्सा जागने लगती थी। उनके स्वरों में कृत्रिमता नहीं, अपितु हृदय की वेदना एवं अनुभूति बोलती थी अतः सीधी हृदय पर चोट करती थी। यहाँ उनके प्रेरक वाक्यांशों को उद्धृत किया जा रहा है, जो किसी भी साधक हृदय में उथल-पुथल मचाने के लिए पर्याप्त हैं 'मेरे मन में बार-बार आता है कि साधु जीवन का स्वीकार ही सब कुछ नहीं है। आध्यात्मिक विकास के लिए नए-नए प्रयोग होने चाहिए। हमारा संघ अनुशासित है, व्यवस्थित है, मर्यादित है किन्तु अब तक भी अध्यात्म की प्रयोगशाला नहीं बन पाया है। मैं प्रायोगिक जीवन में विश्वास करता हूँ। इतने बड़े समूह में सब व्यक्ति प्रयोगधर्मा हों, यह संभव नहीं है, फिर भी एक वातावरण बने। जिनकी प्रयोग करने में रुचि एवं क्षमता हो, उनको रास्ता मिलना चाहिए।' *'हमारे साधु-साध्वियाँ सोचें कि वे कितना काम शरीर का करते हैं और कितना काम आत्मा का? सुंदरता के लिए कपड़ा पहनते हैं तो शरीर का काम करते हैं, स्वाद के लिए खाते हैं तो शरीर का काम करते हैं और शरीर को बढ़िया बनाने का काम करते हैं तो शरीर की गुलामी करते हैं। अगर स्वाध्याय, ध्यान, जप, सेवा, तप और विनय करते हैं तो समझिए आत्मा का काम करते हैं।' * 'हम साधु बने हैं पर किसी के दबाव या प्रभाव से नहीं, अपने विवेक से बने हैं। विवेक से होने वाला काम औपचारिक नहीं हो सकता। साधुत्व हमारी साधना है, मंजिल नहीं है। हमारी मंजिल है
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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