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________________ सार्वभौम अध्यात्म के प्रतिष्ठाता वर्ग का व्यक्ति उनके चरणों में आध्यात्मिक प्रेरणा ग्रहण करने चला आता था। उनकी ये उक्तियाँ इसी सार्वजनिक व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति हैं * मैं पांव-पांव चलकर गाँव-गाँव पहुँचूंगा और जनता को जीवन के लक्ष्य से परिचित कराता रहूँगा। * मैं तो हर वर्ग के बुरे लोगों का इंतजार करता हूँ। कोई आए तो उनका परिवर्तन एवं रूपान्तरण करूँ और अध्यात्म की प्रेरणा दूं। ___ मैं स्वयं पूरे अर्थ में आत्मवान् बनकर अपने धर्म-परिवार एवं सम्पूर्ण मानव जाति को आत्मवान् बनाना चाहता हूँ। इसलिए मैं रहना एकान्त में और करना सबके बीच में चाहता हूँ । चाहे वह ध्यान का क्षेत्र हो या कर्म का। मैं समूह चेतना को जगाना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि मुझे जो जागृति मिली है, वह औरों को भी मिले। * क्या सूरज के अभाव में दीपक अपने सामर्थ्यानुसार संसार का तिमिर दूर नहीं करता? इसी विश्वास को लेकर अध्यात्म का संदेश लिए मैं घर-घर, गाँव-गाँव और नगर-नगर में घूम रहा हूँ। 'मैं समूह से मुक्त होकर किसी भी आदर्श की बात करूं, इसमें विशेषता क्या है? कोई भी व्यक्ति अपने आपको समूह से अलग कर बड़ी-से-बड़ी विचार-क्रान्ति की बात कर सकता है। किन्तु वह क्रान्ति आएगी कहां से? समूह में से ही तो हमें उस क्रान्ति को प्रकट करना होगा? अकेला व्यक्ति क्रान्ति की बात अवश्य कर सकता है, क्रान्ति नहीं कर सकता। इसलिए धर्म की क्रान्ति के लिए, धर्म को तेजस्वी बनाने के लिए हमें समूह को साथ लेकर चलना होगा। जिस विचार-क्रान्ति को समूह का समर्थन मिलेगा, वही सफल हो सकेगी। इसलिए समूह से अलग छिटककर किसी भी ठोस परिणाम की मुझे आशा नहीं।" गुरुदेव तुलसी ने अपने व्यक्तित्व को इतना व्यापक एवं उदार बना लिया था कि कोई भी सीमा उन्हें घेरे में बांध नहीं सकी। वे एक सम्प्रदाय के अनुशास्ता थे पर साम्प्रदायिकता से कोसों दूर थे। जीवन के आठवें दशक में आचार्यपद का परित्याग कर वे सम्पूर्ण मानव जाति के आध्यात्मिक उत्थान की भावना से जुड़ गए। यदि वे केवल धर्मगुरु ही बने रहते तो सीमा में बँध जाते क्योंकि आज धर्म शब्द साम्प्रदायिकता का
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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