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________________ ३४१ साधना की निष्पत्तियां गईं। यह एक संयोग था कि जड़ शब्द का उच्चारण करते ही बादल ने बूंदें फेंकनी बन्द कर दीं। 44 गुरुदेव लाडनूं से दक्षिण यात्रा हेतु प्रस्थान कर रहे थे । इस लम्बी यात्रा की सफलता हेतु चतुर्विध धर्मसंघ ने मंगल कामनाएं अर्पित कीं । गुरुदेव ने अपने विदाई - संदेश में कहा- 'आज मैं यहां से एक लम्बी यात्रा के लिए विदा हो रहा हूं। यात्रा की सफलता तो निश्चित ही है। इसमें कोई संदेह की आवश्यकता नहीं है। बहुत सी बाधाएं हमारे मार्ग में आएंगी। अच्छे काम में बाधाएं सदा विघ्न डालती ही हैं। हमें उनसे डरना नहीं है, उन्हें कुचलकर आगे बढ़ना है।" इस उद्बोधन से स्पष्ट है कि गुरुदेव के अवचेतन मन में रायपुर का घटनाकांड पहले ही तैर गया था । अग्निपरीक्षा का वह तीव्र विरोध उनकी पैनी दृष्टि ने पहले ही भांप लिया था । आचार्य तुलसी ऐसे व्यक्तित्व का नाम था, जो वर्तमान में जीते थे पर भविष्य पर अपनी गहरी नजरें टिकाएं रखते थे । वे ज्योतिषी की भांति भविष्यवाणियां नहीं करते और न ही उन पर अतिविश्वास करते थे । वे स्वयं इस सत्य को स्वीकार करते थे - "मैं न तो भविष्यवक्ता हूं और न बनना चाहता हूं । किन्तु वस्तुस्थिति का व्याख्याता बनने में कोई कठिनाई नहीं है। दूरदर्शिता के फलस्वरूप आने वाले युग की विचारकिरणें गुरुदेव की पारदर्शी आंखें पहले की पढ़ लेती थीं । उन विचार - किरणों की कुछ झलक यहां प्रस्तुत की जा रही है १. 'जिस दिन विज्ञान एवं अध्यात्म का समन्वय होगा, वह दिन विश्व के लिए सुखद होगा। मुझे विश्वास है कि वह दिन जल्दी ही आएगा।' (१४ सितम्बर, १९६९ ) । ज्ञात रहे आचार्यश्री ने योगक्षेम वर्ष से आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व-निर्माण करने का प्रयास प्रारम्भ भी कर दिया था । २. 'आज नहीं तो कल या परसों शिक्षा की पूर्णता के लिए धर्म या आध्यात्मिक प्रशिक्षण को शिक्षा के साथ संयुक्त करना होगा ।' (२५.७.१९६२) इस भविष्यवाणी का फलित ही है कि आज हमारे समक्ष जीवन-विज्ञान की योजना है।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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