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________________ ३४२ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३. 'मुझे लगता है कि आज वैज्ञानिक युग में आडम्बरप्रधान धर्मों का चलना बहुत कठिन है। आज के युग में तो वे ही धर्म चल सकेंगे, जो मनुष्य के जीवन-व्यवहार को शुद्ध करते हैं।' (७ सितम्बर, १९६८) ४. 'जैन विश्व भारती समाज की कामधेनु है। यहां पर धर्म और दर्शन का उच्चतर अध्ययन होगा और जैन-दर्शन पर शोधकार्य चलेंगे।'(जैन भारती १६ मई, १९७१)" उनका यह आभास २० वर्षों के अन्तराल में ' जैन विश्व भारती संस्थान के रूप में फलित हुआ है। ५. आज के हालात को देखते हुए इक्कीसवीं सदी के किशोर और अधिक संस्कारहीन एवं उद्दण्ड होंगे।' यह बात आज हस्तामलकवत् स्पष्ट देखी जा रही है। ६. 'आज जो जीवनशुद्धि के लिए अणुव्रत आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध है, आगे चलकर सम्भव है कि वह अणुव्रत-दर्शन के रूप में व्यवस्थित दर्शन का रूप ले ले और अणुव्रत की नींव पर अहिंसक समाज की रचना तो बहुत सम्भव है।' (जैन भारती १५ अक्टूबर, १९५३) आज यूनिवर्सिटी एवं महाविद्यालयों में अणुव्रत-दर्शन व्यवस्थित रूप से पढ़ाया जा रहा है। ___७. सन् १९५० में भाईजी महाराज के साथ गुरुदेव ने मंत्री मुनि को अपना संदेश भिजवाया। उस संदेश की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं'मंत्रीमुने! मुझे ऐसा जान पड़ता है कि एक बहुत बड़ी जाति होने वाली है।....मेरी मनोभावना इतनी तीव्र हो रही है कि युगप्रवर्तक भिक्षु द्वारा दिखाई गयी राह पर चलकर हम इतना आगे बढ़ सकते हैं, जिसकी कल्पना तक नहीं हो सकती। इतने वर्ष पूर्व किसने सोचा था कि वे 'इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार' से पुरस्कृत होंगे पर गुरुदेव के पारदर्शी व्यक्तित्व ने इसका अहसास पहले ही कर लिया था। ८. "वह दिन आने वाला है जबकि बल से उकताई हुई दुनिया आपसे (भारत से) अहिंसा और शांति की भीख मांगेगी।" (१९५०, नई दिल्ली)। ९. "मुझे विश्वास है कि दिल्ली की इस उर्वर भूमि में हम जो बीज बोयेंगे, वे बीज राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र तक फैलेंगे, बहुत काम होगा। लोग पुनः कहेंगे कि भारत अध्यात्मप्रधान देश है।" (जुलाई १९७०, दिल्ली)।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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