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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी . मुनियों को इस बात की अवगति दी कि आज गुरुदेव के मुख से सहज ही भाद्रवी पूर्णिमा शब्द निकला है अतः ऐसा लगता है कि इस बार लू का अधिक टिकना मुश्किल है क्योंकि कई बार गुरुदेव के मुख से निकले नैसर्गिक वचन के चमत्कार देखे गए हैं। यह देखकर सबको आश्चर्य हुआ कि कुछ ही दिनों बाद मौसम इतना बदला कि वैशाख और जेठ के महीने में सबको भादवे का अहसास होने लगा। राजस्थान में इतनी वर्षा और ठंडी हवा सबके लिए आश्चर्य का विषय थी पर गुरुदेव को नैसर्गिक वचनसिद्धि प्राप्त थी। इसलिए सहज रूप में प्रकृति ने ज्येष्ठ मास को भाद्रपद में बदल दिया होगा।
. गुरुदेव की टेलीपैथी की अनेक घटनाएं हैं, जिनको सुनकर आश्चर्य होता है। गुरुदेव जब किसी को याद करते तो अनेक बार हजारों किलोमीटर की दूरी पर बैठा व्यक्ति अचानक आपकी सेवा में उपस्थित हो जाता। जब उससे अचानक आने का कारण पूछा जाता तो वह आने का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए यह कहता-'अचानक इच्छा हुई और चला आया।' सरदारशहर के चंदनमलजी बैद ने अनेक बार इस रूप में दर्शन किए। उनकी इस टेलीपैथी की शक्ति से पुरुष ही नहीं, प्रकृति भी प्रभावित होती थी। इस प्रसंग में कुछ घटनाओं का उल्लेख अप्रासंगिक नहीं होगा। ____परमाराध्य गुरुदेव अहिंसा समवसरण में उत्तराभिमुख विराजमान थे। गुरुदेव ने चिन्तन किया कि बचपन में उत्तर दिशा में उठती काली कजरारी घटाएं बहुत देखने को मिलती थीं। किन्तु इन वर्षों में ऐसी घटाएं नहीं देखीं। ऐसा सोचना ही मानो घटाओं को आह्वान करना था। कुछ समय बाद ही उत्तर दिशा में काली कजरारी घटाएं उमड़ पड़ीं। यह घटना उनके कामधेनु, कल्पवृक्ष एवं कामकुंभ रूप मन की स्थिति का दिग्दर्शन करवा रही है।
दक्षिण-यात्रा का प्रसंग है। गुरुदेव मंदामारी से कुछ ही आगे चले होंगे कि आकाश में एक बादल उठा और बड़ी-बड़ी बूंदे फेंकने लगा। यह असमय की वर्षा सबको भिगो रही थी। बूंदें शुरू होते ही गुरुदेव के मुख से निकला- 'समय पर बरसे तो जल और असमय पर बरसे तो जड़।' प्रकृति इस व्यंग्य को सह नहीं सकी। वह तत्काल संभली और बूंदें बंद हो