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________________ ३३७ साधना की निष्पत्तियां दिवस है, वे स्वयं चिन्ता वहन करेंगे। तुम क्यों चिन्ता करते हो? ऐसा लगा मानो इन शब्दों ने वर्षा को बांध दिया हो। आकाश में बादल मंडराते रहे, गरजते रहे पर बरसे नहीं। इसमें आचार्य भिक्षु के नाम का चमत्कार तो है ही पर गुरुदेव के शब्दों का चमत्कार भी कम नहीं है। गुरुदेव के मुख से निकली हर बात अधिकांशतया उसी रूप में परिणत हो जाती थी। इस प्रसंग में कुछ घटनाओं का उल्लेख अप्रासंगिक नहीं होगा। कल्याणमलजी बरड़िया को पारमार्थिक शिक्षण संस्था का पर्याय कहा जा सकता है। उन्होंने अपने खून-पसीने से इस संस्था को सींचा तथा हर मुमुक्षु बहिन का सर्वांगीण मार्गदर्शन किया। जीवन की संध्या में उनके पैर की हड्डी का फैक्चर हो गया। शारीरिक दुर्बलता भी चरम सीमा पर थी। वैसी स्थिति में उनके परिवार वाले उन्हें जयपुर ले जाना चाहते थे। गुरुदेव खाटू विराज रहे थे अत: उनके मानसिक संबल हेतु संस्था के व्यक्ति गुरुदेव का संदेश लेने गए। गुरुदेव के मुख से संदेश में सहजतया निकल गया- 'हम लाडनूं आ रहे हैं और कल्याणमलजी जा रहे हैं।' नियति का संयोग था या गुरुदेव के शब्दों का प्रभाव, जैसे ही गुरुदेव ने लाडनूं में प्रवेश किया, श्रीमान् कल्याणमलजी अन्तिम प्रयाण कर गए। लोग इस घटना पर आश्चर्यचकित थे कि गुरुदेव का सहजता में निकला वाक्य भी किस प्रकार फलीभूत हो गया। सन् १९९६ में लाडनूं का घटना प्रसंग है। पश्चिम रात्रि में गुरुदेव आगमेतर स्वाध्याय के साथ दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि आगमों के कुछ अध्ययनों का स्वाध्याय अवश्य करते थे। साल में कुछ महीनों की तिथियां स्वाध्याय के लिए वर्जित मानी गई हैं। लाडनूं-प्रवास में वैशाख पूर्णिमा की रात्रि को गुरुदेव ने स्वाध्याय प्रारम्भ किया। आगम-स्वाध्याय से पूर्व गुरुदेव ने फरमाया- 'आज तो आगम की अस्वाध्यायिक है।' पार्श्वस्थित एक मुनि ने जिज्ञासा प्रस्तुत की- 'गुरुदेव आज अस्वाध्यायिक क्यों हैं?' गुरुदेव ने फरमाया- 'आज भाद्रवी पूर्णिमा है।' मुनि ने विनम्रतापूर्वक बद्धांजलि निवेदन किया- 'आज वैशाखी पूर्णिमा है।' वैशाखी पूर्णिमा की बात सुनकर गुरुदेव आगम-स्वाध्याय में तन्मय हो गए लेकिन उस मुनि का मन भाद्रवी पूर्णिमा में अटक गया। उन्होंने अन्य
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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