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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी १४ लगती हैं अपने लिए, जो बातें प्रतिकूल। उन्हें दूसरों के लिए, मत समझो अनुकूल॥ पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी की पापभीरुता का एक घटना प्रसंग अनेक साधकों को आत्मौपम्य और करुणा का सक्रिय प्रशिक्षण देने वाला है। पूज्य गुरुदेव जब जोबनेर पहुँचे तो वहाँ गाँव के बाहर बांडी नदी थी। गुरुदेव ने विहार किया तब नदी का पानी बह चुका था लेकिन पानी टिके रहने के कारण वहाँ हरियाली (हरित वनस्पति) हो गयी थी। लोगों ने कहा-'गाँव में जाने का दूसरा रास्ता नहीं है। इसी रास्ते से ही आपको जाना होगा। आगे कुछ कदम चलने के बाद रास्ता साफ है।' हरियाली सजीव होती है अतः हरियाली पर कदम रखने की कल्पना से ही पूज्य गुरुदेव के मन में कम्पन का अनुभव होने लगा। कहीं एक अंगुलि टिकाने जितना स्थान भी खाली नहीं था। अन्य मार्ग न होने के कारण शास्त्रीय मर्यादा का स्मरण कर गुरुदेव आगे बढ़े। कुछ दूर चलने पर गुरुदेव के मन में उथल-पुथल मच गई। उस समय गुरुदेव ने मानसिक संकल्प किया, यदि अधिक दूर तक इसी रास्ते पर चलना पड़ा तो कल उपवास करूँगा। . इधर गुरुदेव ने संकल्प किया उधर रास्ता साफ दिखाई देने लगा। निरपराध पंचेन्द्रिय प्राणियों को मौत के घाट उतारने वाले एवं पर्यावरण का अनावश्यक दोहन करने वालों के लिए यह घटना अत्यन्त प्रेरक है। साधना के पथ पर प्रस्थित साधक इन पड़ावों को पार करता हुआ आत्म-साक्षात्कार की दिशा में प्रस्थान करता है। उसकी हर प्रवृत्ति आत्मलक्षी हो जाती है। शुद्ध चैतन्य का अनुभव साधक को सारी संवेदनाओं से ऊपर उठा देता है। फिर उसका एक मात्र लक्ष्य होता है-स्वयं को शांति मिले, जनता को शांति मिले, सारे संसार को शांति मिले और प्राणिमात्र को शांति मिले। ___ साधक अंधकार को चीरता हुआ स्वयं प्रकाश बन जाता है। जैसे सूर्य का अस्तित्व सिद्ध करने के लिए मशाल की जरूरत नहीं रहती वैसे ही आत्मज्ञान होने पर साधक के लिए कुछ भी करणीय शेष नहीं रहता। उसके जीवन में बुद्धि और हृदय के बीच होने वाला संघर्ष मिट जाता है। उसकी सारी क्रियाएँ हृदय से शासित एवं अनुप्राणित होती हैं क्योंकि बुद्धि
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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