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साधना की निष्पत्तियां
'मैं आत्मा हूं, चेतनावान् हूं' यह स्मृति पूज्य गुरुदेव को सतत देह की प्रतिबद्धता एवं आसक्ति से मुक्ति दिलाती रहती थी। उनकी यह विदेह-साधना अनेक साधकों का मार्ग प्रशस्त करके उन्हें आत्मसाक्षात्कार की दिशा में प्रस्थित करती रहेगी। अतीन्द्रिय क्षमता
विज्ञान के सामने ज्ञात तथ्यों का प्रकटीकरण कोई मूल्य नहीं रखता। जो अज्ञात और भविष्य के गर्त में छिपे रहस्यों को अनावृत करता है, वही जनमानस का श्रद्धेय बन सकता है। प्राचीनकाल में बड़े व्यक्तियों के हर कार्य में श्रद्धाभाव रहता था पर आज के तार्किक युग में हर कार्य को तर्क की कसौटी पर कसा जाता है अतः आज व्यक्ति के आधार पर उसके कार्य का मूल्यांकन नहीं होता, बल्कि कार्यों के आधार पर व्यक्ति का व्यक्तित्व मापा जाता है। गणाधिपति तुलसी एक ऐसे व्यक्तित्व का नाम था, जिसने अपनी दूरदर्शी कर्तृत्व की उजली रेखाओं से अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी एक अलग पहचान बनाई।
गणाधिपति तुलसी उस कोटि के दूरद्रष्टा या भविष्यवक्ता थे, जिन्हें अपने साधना-बल, सूक्ष्म चिन्तन एवं दूरदर्शी अनुभूति के बल पर आने वाले युग की हर आहट का ज्ञान पहले ही हो जाता था। उनकी निर्मल प्रतिभा के दर्पण में भविष्य में होने वाली हर घटना पहले ही प्रतिबिम्बित हो जाती थी। यही कारण है कि गुरुदेव श्री तुलसी कोई भी कार्य केवल वर्तमान के क्षणिक प्रभाव से प्रेरित होकर नहीं करते, भविष्य के परिणामों का चिन्तन भी उसमें निहित रहता था। प्राचीन टीकाकारों ने आचार्य के अनेक गुणों में दूरदर्शिता को प्रमुख माना है। गुरुदेव के नेतृत्व का वैशिष्ट्य था कि कालक्षेप से आने वाली समस्याओं को, कठिनाइयों को वे वर्तमान में ही पकड़ लेते थे। यह निर्विवाद सत्य है कि अतीत के अनुभवों के आधार पर किसी संघ का संचालन तो किया जा सकता है पर उसमें नवोन्मेष नहीं उभरते और न ही वह संघ युग की समस्याओं के साथ जूझने का साहस और शक्ति ही जुटा पाता है।
पहले पूर्वाभास को मनःशास्त्री नितांत काल्पनिक मानते थे पर अब अनुसंधान और अन्वेषण के दौरान उनको यह मानना पड़ा है कि बुद्धि में