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________________ ३३४ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी सविवेक भेदविज्ञान किया वह आत्मवान्-आत्मा को उसने पाया है वह ज्ञानवान्-उसने चैतन्य जगाया है वह वेदवान्-शास्त्रों का सही निचोड़ किया वह धर्मवान्-समता से नाता जोड़ लिया वह ब्रह्मवान्-उसने जग से मन मोड़ लिया वह परम-तत्त्व का है संगानी . आयारो की अर्हत् वाणी॥ विदेह साधना सधने पर वीतरागता की ओर स्वतः चरणन्यास हो जाता है क्योंकि तब साधक केवल अपने प्रति, अपने चैतन्य के प्रति जागता है। बाह्य क्रिया करते हुए भी उसका तादात्म्यभाव चेतना के साथ जुड़ा रहता है। एक बार वाउल फकीर से पूछा गया- 'मोह कैसे मिटता है?' उसने सहज मुस्कान के साथ रहस्यमय उत्तर दिया- 'एक के सिवाय सबके प्रति मरने से।' प्रवचन एवं बातचीत में अनेक बार वे दार्शनिक शैली में भेदविज्ञान का रहस्य जनता के समक्ष प्रस्तुत करते रहते थे। दक्षिण यात्रा के दौरान पूज्य गुरुदेव एक बार जेल में पधारे। कैदियों को संबोधित करते हुए गुरुदेव ने कहा- "आप जानते हैं जेल उसके लिए होती है, जो अपराधी होता है। एक दृष्टि से हमारा शरीर सबसे बड़ी जेल है। हमारी उन्मुक्तविहारी आत्मा शरीर रूपी जेल में कैद है। यह हमारे अपराध का परिणाम है। इससे मुक्त होना ही हमारे जीवन का सबसे बड़ा ध्येय है।' लाडनूं प्रवास में कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति गुरुदेव की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने गुरुदेव को कुछ प्रतिबोध देने के लिए निवेदन किया। गुरुदेव ने सहज रूप से संबोध देते हुए कहा- 'आत्मा और शरीर अनादिकालीन साथी हैं। एक को पूरी खुराक मिले और दूसरे को नहीं, क्या यह अच्छी बात है? व्यक्ति हमेशा शरीर को खुराक देता है, आत्मा को नहीं, क्या यह आत्मा के साथ अन्याय नहीं है ? शरीर की भांति आत्मा को खुराक देना भी आवश्यक है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग, सामायिक आदि आत्मा की खुराक हैं।' इस आध्यात्मिक उद्बोधन को सुनकर सभी श्रावक प्रसन्न हो उठे।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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