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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३२६ पाता था तथा उनकी सन्निधि सबको भयमुक्त बनाए रखती थी। "अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः" पतञ्जलि का यह सूक्त गुरुदेव के जीवन में पूर्णतया चरितार्थ होता था। पूज्य गुरुदेव एक गांव में विराज रहे थे। वहां ऊंचे टीले पर टीनों का छपरा बना हुआ था। गुरुदेव के साथ संत भी उसी छपरे में सोने की तैयारी कर रहे थे। चारों ओर जंगल होने से जंगली जानवरों एवं सर्पो का भय था। बिच्छुओं को तो अनेक बार संतों ने आते-जाते देखा पर गुरुदेव के आभामण्डल के प्रभाव से किसी के मन में भय की एक रेखा भी नहीं उतरी। सबने निश्चिन्तता की नींद ली। समाचार पत्रों में जब गुरुदेव आतंकवादियों की हिंसक वारदातों के बारे में सनते या पढ़ते तो उनका मन बेचैन हो उठता। उनकी करुणा कभीकभी इन शब्दों में प्रस्फुटित होती थी- 'मेरे मन में अनेक बार यह विकल्प उठता है कि उपद्रवी और हिंसकों की भीड़ के बीच में खड़ा हो जाऊं और उन लोगों से कहूं कि तुम कौन होते हो निर्दोष एवं निरपराध प्राणियों को मौत के घाट उतारने वाले? बिना साहस या आत्मबल के अहिंसात्मक प्रतिरोध की कल्पना भी मन में नहीं उभर सकती। जाति, रंग आदि के आधार पर किसी को हीन मानकर अपमान करना उनकी दृष्टि में सबसे बड़ी हिंसा और मानवीय अपराध था। मानवमानव में आत्मा की दृष्टि से कोई अंतर नहीं है अत: प्राणिमात्र के प्रति मानवीय व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने अपने प्रवचन-स्थल में हरिजनमहाजन की भेद-रेखा को मिटाने का प्रयत्न किया। यद्यपि इसके लिए उन्हें बहुत संघर्ष झेलना पड़ा लेकिन उनके अथक प्रयास से जातिवाद की जड़ें हिलने लगीं। जातिवाद पर व्यंग्य करता हुआ उनका यह वक्तव्य अनेकों तथाकथित धर्माचार्यों की चेतना को झकझोरने वाला है- 'अगर कोई भगवान् मनुष्य को जातियों में बांटेगा, एक व्यक्ति को जन्म से ऊंचा और एक को जन्म से नीचा बनाएगा तो कम से कम मैं तो उसे भगवान् मानने के लिए तैयार नहीं हूं।...मैं तो उस दिन की प्रतीक्षा में हं जब समस्त मानव समाज में भावात्मक एकता स्थापित होगी और बिना किसी जातिभेद के मानव-मानव धर्मपथ पर आरूढ़ होंगे।' एक गांव में गुरुदेव का प्रवास मंदिर में था। उनके साथ जुलूस में
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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