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________________ ३२५ साधना की निष्पत्तियां * दूसरों की सम्पत्ति, ऐश्वर्य और सत्ता देखकर मुंह में पानी नहीं भर आता, यह अहिंसा का ही प्रभाव है। * घृणा, ईर्ष्या, द्वेष, वैमनस्य, वासना और दुराग्रह-ये सब जीवन में पलते रहें और अहिंसा भी सधती रहे, यह कभी संभव नहीं है। _पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवन से जनता को अहिंसा का सक्रिय प्रशिक्षण दिया। प्रबल हिंसा एवं विरोध के वातावरण में भी उनकी अहिंसा के प्रति निष्ठा कम नहीं हुई। वे कहते थे- 'मेरे जीवन में अनेक प्रसंग आए हैं, जहां कुछ लोगों ने मेरे प्रति हिंसा का वातावरण तैयार किया। वे लोग चाहते थे कि मैं अपनी अहिंसात्मक नीति को छोड़कर हिंसा के मैदान में उतर जाऊं पर मेरे अंतःकरण ने कभी भी उनका साथ नहीं दिया और मैंने हर हिंसात्मक प्रहार का प्रतिरोध अहिंसा से किया।' - कोयम्बटूर में पूज्य गुरुदेव जेल में कार्यक्रम पूरा करके वापिस पधार रहे थे। मोड़ पर घूमते समय अचानक दो लड़के सामने तेजी से साइकिल पर आ रहे थे। लोगों ने रोकना.चाहा पर उन्होंने दुस्साहस किया और साइकिल आगे बढ़ा दी। साइकिल सीधी गुरुदेव के पैर से टकरायी। गुरुदेव ने तत्काल हैंडिल पकड़ लिया फिर भी अगूंठे और घुटने में चोट आ गई। भक्त लोग साइकिल वाले लड़के पर उबल पड़े पर गुरुदेव स्थितप्रज्ञ की भांति ऐसे खड़े थे मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। लोगों ने साइकिल वाले लड़के को पकड़कर पीटना चाहा लेकिन गुरुदेव ने उन्हें शान्त करते हुए कहा- 'जो होना था वह हो गया अब इसे पीटने से क्या होगा? एक व्यक्ति गलती करे उसके साथ दूसरा भी गलती करने लगे तो फिर उसकी महानता क्या हुई? हमें तो हर परिस्थिति में संतुलन और धैर्य रखना चाहिए। हमारी अहिंसा इतनी प्रभावी होनी चाहिए कि क्रूर से क्रूर आक्रान्ता का हृदय बदल जाए।' गुरुदेव के ये उद्गार सुनते ही श्रावक शान्त हो गए और साइकिल पर सवार लड़का गुरुदेव के चरणों में प्रणत हो गया। __ अहिंसा के राजमार्ग पर चलने वाले को किसी प्रकार का भय नहीं सताता। अहिंसा की एकनिष्ठ साधना से पूज्य गुरुदेव का व्यक्तित्व इतना प्रभावी हो गया था कि कोई भी वैर-विरोध या भय उनके सामने टिक नहीं
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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