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________________ ३२२ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी बोलता और न वे। ऊपर में बीस-बीस छात्र उनके छात्रावास में रहे पर तुलसी के प्रति सबमें समान आदर भाव और श्रद्धा देखी।' पूज्य गुरुदेव का मानना था कि जो व्यक्ति स्वयं पर अनुशासन नहीं कर सकता उसे दूसरों पर अनुशासन करने का अधिकार प्राप्त नहीं हो सकता। आत्मचिंतन के क्षणों में उनके मुख से निःसृत ये पंक्तियां इसी सत्य की द्योतक हैं- "मेरे कंधों पर संघ के अनुशासन की पूरी जिम्मेवारी है। मेरी आत्मा जितनी उज्ज्वल और अनुशासित होगी, शासन भी उतना ही समुज्वल होगा।' वे बाल साधुओं को अनेक बार प्रशिक्षण देते हुए कहते थे- 'जो बचपन में कठोर अनुशासन में रहना नहीं जानता, उसे जीवन भर दूसरों के अनुशासन में रहना पड़ता है।' 'पंचसूत्रम्' में उन्होंने इसी सत्य को उद्गीर्ण किया है पुरा स्वातंत्र्यमिच्छंति, ते नार्हन्ति स्वतंत्रताम्। पुरानुशास्तिमिच्छंति तेऽर्हन्ति सुस्वतंत्रताम्॥ पूज्य गुरुदेव ने ६० साल की लम्बी अवधि तक एक विशाल धर्मसंघ पर अनुशासन किया। इससे पूर्व भी मुनि अवस्था में उनके अधीन बाल मुनियों पर उनका कड़ा अनुशासन था। बाद में वे आचार्यपद के दायित्व से मुक्त हो गए पर अनुशासन करने से मुक्त नहीं हुए। वे कहते थे- "मैं आचार्य पद से मुक्त हुआ हूं पर अनुशासन करने से नहीं। गलती होने पर मैं किसी को भी आंख दिखा सकता हूं।" उनके अनुशासन का वैशिष्ट्य था कि वे किसी पर बलात् अनुशासन थोपना नहीं चाहते थे। उनकी हार्दिक अभीप्सा थी कि हर शिष्य का आत्मानुशासन जागे। उनका यह वक्तव्य इसी बात की संपुष्टि करता है'मैं किसी को नियम में बांधना नहीं चाहता। जो नियम ऊपर से लादे जाते हैं, उन पर मेरा स्वयं का विश्वास नहीं है। मैं व्यक्ति के अधिकार को कुचलना नहीं चाहता। मैं आत्मानुशासन में विश्वास करता हूं अतः सबको आत्मानुशासित एवं स्वावलम्बी बनाना चाहता हूं।' 'पंचसूत्रम्' में भी उन्होंने इसी सत्य को प्रस्तुति दी है गुरुर्वाञ्छति शिष्येषु, विकसेदात्मशासनम्। न वाञ्छति भवेयुस्ते, नित्यं संप्रेरिताः परैः॥
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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