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________________ साधना की निष्पत्तियां आत्मानुशासन जगने के बाद बाह्य अनुशासन कृतार्थ हो जाता है । आस्था, संकल्प और अभ्यास- इन तत्त्वों का अभ्यास होने पर आत्मानुशासन स्वतः प्रकट होने लगता है। तब अनुशासन को आरोपित नहीं करना पड़ता, वह हार्दिक और सहज स्वीकृत होता है। अमेरिकन लोगों के समक्ष स्वामी विवेकानन्द का दिया गया प्रतिबोध इसी सत्य का संवादी है - 'आत्मानुशासन जगने के बाद किसी प्रकार की दासता शेष नहीं रहती। मन पर विजय प्राप्त करने के बाद संसार सुखमय हो जाता है। फिर हमारे ऊपर किसी भी अच्छे बुरे भाव का असर नहीं होता। हमें सब कुछ यथास्थान और सामंजस्यपूर्ण दिखलाई पड़ेगा ।' पूज्य गुरुदेव आत्मानुशासन के उस शिखर पर स्थित थे, जहां उनकी हर क्रिया दूसरों के लिए अनुशासन का सहज बोधपाठ बन गयी । अहिंसक वृत्ति एवं खु नाणिणो सारं, जं न हिंसइ किंचण - 'ज्ञानी होने का सार यही है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता। इस वाक्य को इस रूप भी कहा जा सकता है कि साधक होने का सार यही है कि वह अपनी असत् प्रवृत्ति से किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाता। अहिंसा किसी भी महापुरुष की सबसे बड़ी शक्ति होती है। अहिंसा चिरंतन जीवन-म‍ - मूल्य है अतः किसी भी देश और काल में इसकी मूल्यवत्ता को कम नहीं किया जा सकता । ३२३ पूज्य गुरुदेव का सम्पूर्ण जीवन अहिंसा की जीती जागती मशाल रहा। बचपन में ही उन्होंने अहिंसा के राजमार्ग पर अपना चरणन्यास कर दिया था । अहिंसा के प्रति व्यक्त निष्ठा की एक झलक उन्हीं के शब्दों में पठनीय है * मैं अहिंसा की अन्तर्यात्रा में विश्वास करता हूं । * बचपन से ही अहिंसा के प्रति मेरी आस्था पुष्ट हो गयी थी । आस्था की वह प्रतिमा आज तक कभी खंडित नहीं हुई । * अहिंसा में मेरा अंधविश्वास नहीं है । वह मेरे जीवन की प्रकाश - रेखा है।
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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