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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३२० आत्मानुशासन जगाने के लिए दृढ़ संकल्प एवं आत्मा की अनंत शक्ति पर विश्वास अपेक्षित है। अनियंत्रित मन वाले व्यक्तियों को प्रतिबोध देते हुए पूज्य गुरुदेव कहते थे- 'मेरे अभिमत से हर व्यक्ति निरोध की शक्ति से सम्पन्न है। उस शक्ति के उपयोग की क्षमता विकसित हो जाए तो फिर यह विवशता सामने नहीं आएगी कि अनंत इच्छाओं पर अनुशासन कैसे किया जाए?' साधक इच्छा और आवश्यकता में भेद-रेखा खींचना जानता है अतः वह शरीर और मन की उचित अपेक्षा को जानकर ही उसकी पूर्ति करता है। वह जानता है कि साधना को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए इच्छाओं पर नियंत्रण करना अत्यंत अनिवार्य है क्योंकि इच्छाओं का नियंत्रण करने वाला ही स्वतंत्रता का मूल्य आंक सकता है। पूज्य गुरुदेव का आत्मानुशासन इतना सधा हुआ था कि इंद्रियां कभी अनीप्सित विषय की ओर दौड़ती ही नहीं थीं। हिसार में एकान्तवास के दौरान साधनाकालीन अनुभव उनकी इसी विशेषता को उजागर करने वाला है- 'मेरा अनुभव बताता है कि इन्द्रिय और मन की मांग को समाप्त किया जा सकता है। अपने जीवन में पहली बार एक प्रयोग कर रहा हूं। इस समय इन्द्रियां निश्चिंत हैं और मन शान्त है। खान-पान, शयन, जागरण, देखना, बोलना किसी भी प्रवृत्ति के लिए मन पर बाध्यता नहीं है। पहले भोजन में कुछ पदार्थों की अपेक्षा अनुभव होती थी अब इस स्थिति के भाव और अभाव में कोई अंतर नहीं लगता है। साधना के विविध प्रयोगों के माध्यम से साधक अपनी इन्द्रियों और मन को साधने का अभ्यास करता रहे, यह अपेक्षित है।' जिसका आत्मबल प्रबल होता है, वही नियंत्रण या अनुशासन की क्षमता का विकास कर सकता है। स्वच्छंद व्यक्ति स्वतंत्रता और स्वाधीनता का मूल्य नहीं समझ सकता क्योंकि अध्यात्मशून्य स्वतंत्रता के कारण वह उच्छृखल बन जाता है। कभी वह मन के अधीन होता है तो कभी वाक्.. पारुष्य के कारण दंडित होता है। कभी शरीर से गलत प्रवृत्ति करता है तो कभी आवेश आदि वृत्तियों के अधीन हो जाता है। पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रस्तुत आत्मानुशासन का प्रतिबोध देने वाले ये प्रश्न हर आत्मार्थी को कुछ सोचने के लिए मजबूर करते हैं- "हर व्यक्ति अपने भाग्य की लिपि लिखने से पहले एक क्षण रुककर सोचे कि वह यंत्र है या स्वतंत्र? यदि वह स्वतंत्र
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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