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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ___वि.सं. २०१३ सरदारशहर का प्रसंग है। एक दिन संध्याकालीन प्रतिक्रमण के समय गुरुदेव ध्यान में तल्लीन थे। अचानक एक छिपकली पीठ पर चढ़ गई पर गुरुदेव ने ध्यान नहीं तोड़ा। ध्यान पूरा होने पर ध्यान दिया कि दाहिने हाथ पर छिपकली चढ़ गई थी।सामान्य व्यक्ति तो मक्खी या मच्छर का स्पर्श भी सहन नहीं कर सकता।
साधक का लक्ष्य होता है- चंचल एवं विक्षिप्त चित्त को एकाग्र करना किन्तु मात्र पुस्तकीय ज्ञान से चित्त की चंचलता को कम नहीं किया जा सकता। साधना के विविध प्रयोग एवं दृढ संकल्प चित्त की चंचलता को कम करने के निमित्तभूत बन सकते हैं। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को मनोनिग्रह का प्रशिक्षण देते हुए कहते हैं- "अभ्यासेन तु कौन्तेय! वैराग्येन च गृह्यते" अर्थात् अभ्यास और वैराग्य से मन को एकाग्र किया जा सकता है। 'मनोनुशासनम्' में पूज्य गुरुदेव ने ये ही प्रयोग निर्दिष्ट किए हैं। उत्तराध्ययन में मन रूपी घोड़े को वश में करने के लिए ज्ञान की महत्ता प्रतिपादित हुई है। .
स्वामी विवेकानंद ने एक महत्त्वपूर्ण बात कही है कि साधारण व्यक्ति और महान् व्यक्ति में यही अंतर होता है कि महान् व्यक्ति का चित्त एकाग्र होता है और साधारण व्यक्ति का मन चंचल होता है। ज्ञान का भंडार केवल चित्त की एकाग्रता की चाबी द्वारा ही खोला जा सकता है। पूज्य गुरुदेव की भावक्रिया साधना प्रकर्ष पर थी अत: एकाग्रता की शक्ति उन्हें सहज प्राप्त थी। एकाग्रता के कारण उनके मन, वचन और कायाये तीनों योग इतने समाहित हो चुके थे कि विक्षेप की स्थिति का सामना उन्हें बहुत कम करना पड़ा। . ... उदयपुर कलामण्डल के कलाकार दयाराम ने गुरुदेव के समक्ष विचित्र नृत्य का प्रदर्शन किया। उसने सिर पर एक के ऊपर एक करके पाँच गिलास रखे फिर थाली के किनारे पर खड़े होकर नृत्य किया। दूसरी बार गिलास पर पाँच छह हाँडियाँ रखकर उसी प्रकार प्रदर्शन किया। उसे देखकर गुरुदेव ने अपनी अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा -'व्यक्ति अपने मन और शरीर को कितना बाँध सकता है, स्थिर रख सकता है। काश! ऐसी स्थिरता साधना के क्षेत्र में आ जाए। आत्मोपलब्धि के लिए