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________________ साधना का उद्देश्य चंचल मन की स्थिति का चित्रण गुरुदेव तुलसी की इन काव्य-पंक्तियों में पठनीय है चंचल मन ही हर मानव को, दर-दर भटकाता है। मन पर संयम करने वाला, पग-पग सुख पाता है। एकाग्रता का अर्थ है- जिस समय जो कार्य करना है, चित्त पूर्णतया उसी में लगा रहे । एकाग्रता एक चोर में भी होती है, कामान्ध में भी होती है पर वैसी एकाग्रता साधक को लक्ष्य के दर्शन नहीं करा सकती। जिस एकाग्रता के साथ चित्त की निर्मलता, जागरूकता एवं पवित्रता जुड़ती है, वही कामयाबी बनती है। पूज्य गुरुदेव का अभिमत था कि जो एकाग्रता चैतन्य या अपने अस्तित्व के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करती है, वही एकाग्रता साधना की दृष्टि से बहुमूल्य है और इससे जो संतोष मिलता है, वह करोडों उपलब्धियों में भी नहीं मिल सकता। चंचलता के कारण भीतरी आनंद का अनुभव नहीं हो सकता। स्वामी विवेकानंद का अभिमत है कि मनुष्य और पशुओं में मुख्य भेद केवल चित्त की एकाग्रता शक्ति का तारतम्य ही है। पशु में एकाग्रता की शक्ति का विकास नहीं होता इसलिए उसे जो कुछ सिखाया जाता है, उसे वह भूल जाता है। वह अधिक समय तक किसी बात पर स्थिर नहीं रह सकता। किसी भी कार्य की सफलता और अत्युच्च प्रवीणता एकाग्रता का फल है। गुरुदेव श्री तुलसी विद्यार्थी साधु-साध्वियों को अनेक घटना प्रसंगों से एकाग्रता और स्थिरता का प्रतिबोध देते थे। पादविहार करते हुए पूज्य गुरुदेव ने एक बार भाखड़ा नांगल से निकलने वाली नहर पर विश्राम • किया। सुरम्य दृश्य देखकर पूज्य गुरुदेव वहाँ शान्त सुधारस के स्वाध्याय में तल्लीन हो गए। गीत सम्पन्न होने के बाद जब गुरुदेव ने आँखें खोली तो उनकी दृष्टि बहते जल-प्रवाह पर पड़ी। बहते जल में स्वयं का प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं दिया। इस घटना को संबोध का माध्यम बनाते हुए गुरुदेव ने फरमाया-"जिस प्रकार चंचल जल-प्रवाह में अपना प्रतिबिम्ब दिखाई नहीं पड़ता, वैसे ही चलित या चंचल चित्त में आत्मदर्शन नहीं हो सकता। स्वरूप-दर्शन तो निश्चल और निर्मल मन में ही हो सकता है।"
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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