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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी भेदरेखा करना जानता है। इसलिए इच्छाएं उसे गलत दिशा में प्रवृत्त नहीं होने देतीं। पूज्य गुरुदेव की यह चेतावनी हर साधक को गहराई से अनुप्रेक्षा करने की प्रेरणा देती है-"आवश्यकताओं की असीमा जीवन में घोर अपवित्रता लाती है। इसे जो सोच नहीं सकते वे विश्वास मानकर चलें और जो सोच सकते हैं, वे अनुभव की कसौटी पर कसकर देखें।" पूज्य , गुरुदेव की दृष्टि में मानसिक पवित्रता के लिए चार बातें अपेक्षित हैं
* चरित्र, संयम और साधना की सही प्रक्रिया। * क्रिया में पूर्ण जागरूकता का बोध।
दृढ़ संकल्प और एकाग्रता। * वातावरण की शुद्धता। '
चैतसिक निर्मलता सधने के बाद साधक चाहे एकान्त में रहे या समूह में, चित्र देखे या प्रवचन सुने, मनोनुकूल भोजन पाए या रूखासूखा, कोई भी स्थिति उसके मन में विक्षेप पैदा नहीं कर सकती। वह अपनी मानसिक पवित्रता को अक्षुण्ण बनाए रखता है। वह पवित्रता कर्म को भी सदैव पवित्र रखती है, क्योंकि विचार आचार को प्रभावित करता है और आचार विचार बनता है अतः बुरे विचारों से आक्रान्त होकर अपने आदर्शों को छोड़ना सबसे बड़ी कमजोरी है। एकाग्रता का अभ्यास
जीवन की सफलता का बहुत बड़ा रहस्य एकाग्रता में निहित है। केवल साधना के क्षेत्र में ही नहीं, शिक्षा, कला, वाणिज्य, विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों में सफलता के लिए एकाग्रता एवं तन्मयता की मूल्यवत्ता है क्योंकि समग्रता में जो शक्ति होती है, वह उसके विभक्त होने में नहीं होती। आइंस्टीन जब अपनी प्रयोगशाला में होते, तब काम में इतने तल्लीन बन जाते कि उन्हें न भूख का अहसास रहता न प्यास का। चित्त भी जब अखंड और समग्र रहता है, तभी वह शक्ति-सम्पन्न बनता है। खंडित चित्त की शक्तियाँ बिखर जाती हैं और जीवन भारभूत तथा निकम्मा बन जाता है। स्वेट मार्डन का कहना है कि व्यक्ति के असफल एवं दुःखी होने के दो कारण हैं-१. अपनी योजनाओं के लिए पक्के निश्चय की कमी तथा उन पर काम करते समय बार-बार दुविधा या चंचलता का अनुभव।