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साधना की निष्पत्तियां
बाहों से हम अम्बुधि अगाध थाहेंगे, धंस जाएगी यह धरा, अगर चाहेंगे। तूफान हमारे इंगित पर ठहरेंगे,
हम जहां कहेंगे, मेघ वहीं घहरेंगे। बम्बई यात्रा की घोषणा पर लिखा गया डायरी का पृष्ठ उनके आत्मबल एवं श्रद्धाबल का जीवन्त निदर्शन है- 'इतनी लम्बी यात्रा, ६०० मील चलना, वह भी तीन महीनों में, बीच-बीच में कई गांवों एवं शहरों में रुकना भी आवश्यक है और स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना है। इन सबके बावजूद भी मेरी अन्तरात्मा कह रही है कि मुझे इस वर्ष बम्बई पहुंचना चाहिए। मेरी इस तीव्र भावना के साथ मेरा आत्मबल है, शासन का बल है और लोकहित की भावना का प्रबल बल है। निश्चित ही हम इस बार बम्बई पहुंचेंगे। कालूगुरु की कृपा मेरे साथ हैं।'
पूज्य गुरुदेव का तीव्र आत्मबल कमजोर मनोबल वाले व्यक्तियों में भी विशिष्ट शक्ति एवं ऊर्जा का संचार करता रहता था। उनका मानना था कि कोई भी बाधा, रुकावट या मुसीबत आत्मबल के सम्मुख टिक नहीं पाएगी। वह हार मानकर अपना समर्पण कर देगी। जन-जन की सोयी आत्म-शक्ति को जगाने के लिए उनका कवि मानस बोल उठा
जिसने ब्रह्म पा लिया, उसने सब कुछ पाया, त्वरित असंभव को भी, संभव कर दिखलाया। शूली को सिंहासन, अहि को हार बनाया, वज्र कपाटों को, पल भर में तोड़ गिराया॥ तत्क्षण ही सहकार बिना बोए फलता है, आत्मशक्ति का स्रोत, जिधर भी बह चलता है। उधर निरंतर हरा-भरा उपवन खिलता है।
विकास परिषद् की इकाइयों की योजना पर चिन्तन चल रहा था। उसी सिलसिले में एक भाई ने कार्य में आने वाली कुछ कठिनाइयों का जिक्र किया। कठिनाइयों को सुनने के बाद पूज्य गुरुदेव ने सबमें आत्मबल भरते हुए कहा- 'कठिनाइयां न आएं, वह कार्य ही क्या? कठिनाइयों से तो हमें प्रेरणा मिलती है। मेरा सबसे लम्बा कार्यकाल रहा, अगर कठिनाइयों