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________________ ३०८ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी बड़ा शस्त्र मानते थे। साधन-सामग्री के अभाव में भी आत्मबल जगाने पर दुनिया में असंभव जैसा कुछ नहीं रहता। पूज्य गुरुदेव का आत्मबल और साहस बचपन से ही उत्कर्ष पर था। बड़े भाई द्वारा दीक्षा की अनुमति न मिलने पर ग्यारह वर्ष की अवस्था में सभा के मध्य खड़े होकर उन्होंने स्वयं आजीवन विवाह न करने एवं व्यापारार्थ परदेश न जाने का संकल्प ले लिया। बिना प्रबल आत्मविश्वास एवं आत्मबल के ऐसा संभव नहीं हो सकता था। . बीदासर २०२७ का घटना प्रसंग है। गुरुदेव शारीरिक दृष्टि से अस्वस्थता का अनुभव कर रहे थे। उस स्थिति में गुरुदेव के कपड़े अपने आप जल गए। सबके मन भयभीत एवं चिन्तातुर हो गए लेकिन गुरुदेव के मन पर उस घटना का कोई असर नहीं हुआ। लोगों को सांत्वना देते हुए उन्होंने कहा- 'यदि हमारा आत्मबल प्रबल है तो कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता अतः चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।' . जब आत्मबल प्रबल होता है, तब परिस्थिति पराजित हो जाती है। जब आत्मबल दुर्बल होता है तब परिस्थितियां अस्तित्व पर हावी होने लगती हैं। पूज्य गुरुदेव परिस्थितियों को आत्मबल पर हावी नहीं होने देते थे क्योंकि वे इस सत्य को स्वीकार करके चलते थे कि सत्य को जीवन में उतारने तथा संसार में फैलाने में जो भी बाधाएं आएं उनसे परास्त न होकर उन्हें चीरकर आगे बढ़ते जाना इसी में साधक जीवन की सफलता है। सन् १९६२ का प्रसंग है। गुरुदेव ने उदासर से बीकानेर की ओर प्रस्थान किया। उस दिन शरीर को चीरने वाली शीतलहर चल रही थी। विहार के समय तीव्र वर्षा भी हो गई। मौसम की प्रतिकूलता के कारण साधु-साध्वियों को चलने में काफी कठिनाई रही। गुरुदेव ने संतों को प्रेरणा देते हुए कहा"साधु जीवन में कभी प्रकृति जनित कठिनाइयां सामने आती हैं तो कभी पुरुष जनित । साधु का काम है- हर परिस्थिति में संतुलित रहकर आत्मबल बढ़ाना। अनुकूलताओं में प्रसन्नता और प्रतिकूलताओं में खिन्नता आत्मबल को क्षीण कर देती है। साधु इनसे अप्रभावित रहे तो उसकी साधना का विकास होता है और आत्मबल जागृत होता है।" पूज्य गुरुदेव के आत्मबल को दिनकर की इन पंक्तियों में प्रस्तुत किया जा सकता है
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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