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________________ ३०७ साधना की निष्पत्तियां थे कि समूह चेतना से जुड़ा हुआ एक भी व्यक्ति यदि असंतुलित होता है तो उसका प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में सब पर पड़ता है। यात्रा के दौरान सैकड़ों ऐसे प्रसंग हैं, जब साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण पूर्व स्वीकृति के बावजूद भी समय पर लोगों ने स्थान देने से इंकार कर दिया। पर गुरुदेव ऐसे प्रसंगों को प्रेरणा मानकर उसे अच्छे रूप में स्वीकार कर लेते थे। किसी भी प्रकार के मानसिक विचलन का अनुभव नहीं करते क्योंकि उनका सिद्धान्त था कि सुख-दुःख दोनों में सम एवं संतुलित रहने वाला साधक ही विजयश्री का वरण कर सकता है। उनके संतुलन का रहस्य उन्हीं की भाषा में पठनीय है- 'मैं परिस्थितियों का कायल नहीं हूं इसलिए मैंने कष्टों से घबराना नहीं, मुकाबला करना सीखा है। हम विरोध को विरोध से काटना चाहते तो हमें कभी सफलता नहीं मिलती। हमने उसे विनोद में परिणत कर लिया, उसका प्रतिवाद नहीं किया। इसलिए कई वर्षों तक निरंतर चलने वाला विरोध का वह क्रम एक दिन अपने आप शिथिल हो गया।' संतुलन के साथ धैर्य का निकटतम अनुबंध है। बिना धैर्य के व्यक्ति बहुत जल्दी बिखर जाता है। पूज्य गुरुदेव मानते थे कि साधना की सफलता का आदि बिन्दु एवं अंतिम बिंदु धैर्य है। जीवन के लम्बे सफर में धैर्य जैसे महान् साथी को छोड़कर चलना भयंकर भूल है। टॉलस्टाय ने जीवन की उन्नति का सारा श्रेय धैर्य को दिया। उन्होंने कहा- 'तब तक धैर्य रखो जब तक पानी जमकर बर्फ न बन जाए। धैर्य छलनी में भी पानी को टिकाकर रख सकेगा।' पूज्य गुरुदेव का धैर्य मेरु की भांति अडोल था। इसीलिए उनके जीवन में असंतुलन के क्षण बहुत कम उपस्थित हुए। आत्मजागृति _ 'मैं मानता हूं, मेरे पास न रेडियो, न अखबार और न आज के प्रचार योग्य वैज्ञानिक साधन हैं और न मैं इन सबका उपयोग ही करता हूं। लेकिन मेरी वाणी में आत्मबल है, आत्मा की तीव्र शक्ति है और मुझे अपने संदेश के प्रति आत्म-विश्वास है। फिर कोई कारण नहीं कि मेरी यह आवाज जनता के कानों से नहीं टकराए।' यह आत्मबल किसी विरले साधक को ही प्राप्त होता है। पूज्य गुरुदेव आत्मबल को व्यक्ति का सबसे
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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