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साधना की निष्पत्तियां * 'बचपन में मैंने कभी तनाव का नाम ही नहीं सुना। उम्र के नौवें दशक में पहुंचने पर भी मैं तनाव के बारे में बहुत कम जानता हूं। इसे अपनी साधना मानूं, प्रकृति का वरदान मानूं या गुरुओं की कृपा, वास्तविकता यही है कि मैं तनाव को नहीं जानता।'
*'एक धर्मसंघ का दायित्व संभालते समय मेरे सामने विभिन्न प्रकार की परिस्थितियां आती हैं। परिस्थिति की विकटता एक बार मुझे विचलित कर सकती है पर मैं तत्काल संभल जाता हूं। इसी कारण मैं हर समय मानसिक दृष्टि से स्वस्थ और संतुलित रहता हूं। इस संदर्भ में मैं अपने अनुभवों का उपयोग करते हुए यह कह सकता हूं कि तनाव उनको होता है, जिनका स्वयं पर अनुशासन नहीं है। तनाव उन्हें सताता है, जिनका अपनी वृत्तियों पर कंट्रोल नहीं है। तनाव की समस्या उनके सामने है, जो स्वतंत्र नहीं, यंत्र हैं। उनके यान्त्रिक जीवन की पहचान है दूसरों के मूल्यांकन पर अपना अंकन। किसी के कहने मात्र से अपने कार्य को अच्छा या बुरा मानने वाले व्यक्ति कभी तटस्थ चिन्तन नहीं कर सकते और न ही संतुलित रह सकते हैं।'
. मानसिक असंतुलन का एक बहुत बड़ा कारण है-एकांगी दृष्टिकोण । केवल भौतिकता व्यक्ति को विलासिता की ओर ढकेलकर असंतुलित बना देती है। जीवन रूपी तराजू के पलड़े को सम रखने के लिए भौतिकता के साथ अध्यात्म का संतुलन आवश्यक है। भौतिकता की अंधी दौड़ में भागती मनुष्य जाति को प्रतिबोधित करते हुए पूज्य गुरुदेव कहते थे- 'भौतिक साधना में श्रम, शक्ति और बुद्धि का जितना व्यय होता है, उसका आधा भाग भी आत्मसाधना में लग जाए तो व्यक्ति योगी भले ही न बने पर मानसिक असंतुलन मिट जाएगा।"
धर्म का क्षेत्र हो या कर्म का, जिस व्यक्ति का चित्त समाहित और संतुलित होता है, वही हर क्षेत्र में सफल हो सकता है। मानसिक विक्षेप की स्थिति सामान्य घटना में भी व्यक्ति को उद्वेलित और असंतुलित कर देती है। वह छोटी-सी समस्या से आहत होकर टूट जाता है। समस्याओं से जूझने की शक्ति नहीं जुटा पाता। पूज्य गुरुदेव अपने मस्तिष्क को तनाव एवं विक्षेपों से कोसों दूर रखते थे अत: उनके सामने किसी भी समस्या का