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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३०४ उच्चता और हीनता के प्रसंग उसे संतुलित रहने की सीख देते हैं। इस संदर्भ में पूज्य गुरुदेव का यह अनुभव अत्यन्त मार्मिक एवं प्रेरणास्पद है- 'मैं स्वयं को बड़ा सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे अपने जीवन में एक ओर भरपूर प्रशंसा मिली तो दूसरी ओर निन्दा एवं आलोचना की भी कमी नहीं रही। एक ओर बड़े से बड़ा सत्कार तो दूसरी ओर भयंकर तिरस्कार । इसे मैं अपने लिये वरदान मानता हूं क्योंकि मुझे संतुलित रहने का अवसर मिला है। प्रशंसा की तुलना में मेरी आलोचना नहीं होती तो मैं अहंकार से भर सकता था पर दोनों पलडे बराबर हैं। ऐसी स्थिति में दर्द किस बात का हो? हमें प्रसन्नता है कि हम स्वागत में फूले नहीं और विरोध में घबराए नहीं इसलिए हमारे सामने उपस्थित होने वाली समस्याओं का यथासंभव स्वयं समाधान निकल आया। असंतुलन होता है तो व्यक्ति की प्रसन्नता और रुष्टता अपने हाथ में न रहकर पराए हाथ में चली जाती है।' _ पूज्य गुरुदेव विहार करते हुए चौमू पधारे। वहां पहुंचने पर पता चला कि ठहरने के लिए स्थान नहीं मिला। पूज्य गुरुदेव बिना किसी प्रतिक्रिया के एक मकान के बाहर बनी चौकी पर विराज गए। साधु एवं श्रावक स्थान की खोज में लगे हुए थे पर स्थान न मिलने पर गुरुदेव वहां एक घंटा विराजे। पास खड़े लोगों ने कहा- "एक धर्मसंघ के महान् आचार्य स्थान न मिलने पर भी कितने प्रसन्न हैं ?' पूज्य गुरुदेव ने फरमाया'स्थान, भोजन या वस्तु कुछ भी हो, इन पर हमारा कोई अधिकार तो है नहीं। गृहस्थ सुविधा से प्रसन्नता के साथ देते हैं, तभी हम इनका उपयोग करते हैं। साधु जीवन में ऐसे प्रसंग आ सकते हैं, जब गृहस्थ स्थान आदि के लिए निषेध कर दे। पर हम उन पर आक्रोश कैसे कर सकते हैं ? हमारी साधना की सफलता तो यही है कि हम लाभ और अलाभ-'दोनों परिस्थितियों में संतुलित रहें।' आधुनिक युग की सबसे बड़ी मनोव्याधि है-तनाव। तनाव मानसिक संतुलन का प्रबल शत्रु है। विशाल धर्मसंघ के अनुशास्ता होने के कारण उनके सामने अनेक विकट समस्याएं आती थीं पर संतुलन के कारण कोई भी समस्या उनको तनावग्रस्त नहीं कर पाती थी। इस संदर्भ में उनकी ये अनुभवपूत अभिव्यक्तियां अनेक व्यक्तियों का मार्गदर्शन करने वाली हैं
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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