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________________ ३०१ साधना की निष्पत्तियां 'अब क्या पढ़ें महाराज! आधी तो गई अब तो श्मशान में ही पढ़ेंगे। वहां ७५ वर्ष की अवस्था में भी गुरुदेव तुलसी कुछ न कुछ नया ग्रहण करने के लिए सदैव समुत्सुक रहते थे। गुरुदेव के पास अंग्रेजी का समाचार-पत्र पड़ा था। उसमें अहिंसा दिवस पर विद्वानों के भाषण थे। पत्र उठाकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए खेदपूर्ण शब्दों में गुरुदेव कहने लगे'अंग्रेजी न पढ़ना भी एक कमी है। मन में आता है अब भी पढ़ लूं पर समय के अभाव के कारण संभव नहीं लगता।' गुरुदेव तुलसी के गतिशील एवं अस्खलित पौरुष का ही यह परिणाम था कि अवस्था से जवान व्यक्ति जिस कार्य को करने में झिझकते थे, उसे वे सहजता से कर डालते थे। मेवाड़ यात्रा में कमेड़ी से सेलागुड़ा जाते समय रास्ते में एक बड़ी चट्टान आई। चट्टान का पथ थोड़ा छोटा था जबकि सड़क का पथ सरल होते हुए भी लम्बा था। लोगों ने बाल संतों को कहा- 'आप तो बच्चे हैं अतः इस चट्टान पर चढ़ जाइए।' वे गुरुदेव के इंगित को देखने का प्रयत्न करने लगे। सहसा अपने सधे कदमों से गुरुदेव ने चट्टान की उस ऊंचाई को माप लिया। वहां चट्टान पर उन्होंने दो क्षण विश्राम किया। तत्काल उनका कवि मानस बोल उठा- चढ़ बैठ्या चट्टान, छोड़ सरल पथ सड़क रो। म्है हां अजब जवान, वय उणसत्तर बरस में। यहां पर मेवाड़ की एक और घटना को प्रस्तुत करना भी अप्रासंगिक नहीं होगा। काली घाटी की चढ़ाई प्रारम्भ हो गई। बीहड़ रास्ता, उस पर तेज तूफान और बरसात, चिकनी मिट्टी, पग-पग पर फिसलन। हवा प्रतिकूल दिशा में बह रही थी। उसका प्रवाह इतना तीव्र था कि एक साध्वी की मुखवस्त्रिका भी उड़ गई। किसी के कपड़े तो किसी के लंकार उड़कर दूर चले गये। उस रास्ते चलते हुए गुरुदेव स्वयं बोल उठे- 'ऐसी हवाएं और तूफान तो जीवन में कभी नहीं देखे। लोगों के निवेदन पर भी गुरुदेव रुके नहीं, प्रत्युत बढ़ते ही रहे। अपनी सहिष्णुता और पुरुषार्थ से काली घाटी को भी उन्होंने अभय घाटी बना दिया। इस घटना को उन्होंने तत्काल काव्यबद्ध भी कर दिया मग नवमी घाटे चढ्या, कालीघाटी नाम। तूफानी ऊफान रो, भारी भरकम काम॥
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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