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________________ - साधना की निष्पत्तियां कभी-कभी जब संत विश्राम की प्रार्थना करते तो वे मुस्करा उठते और यह कहकर टाल देते कि मेरी कुंडली में योग ही ऐसा है। गुरुदेव तुलसी की दृष्टि में शयन विश्राम नहीं, अपितु कार्य परिवर्तन ही विश्राम था। वे बहुत बार साधुओं को प्रतिबोध देते हुए कहते थे— 'निष्क्रिय बनकर बैठे रहना विश्राम नहीं, समय का अपव्यय है । ऐसा विश्राम मेरी प्रकृति के प्रतिकूल है। मुझे कार्य के सामने भूख और प्यास नहीं सताती । २४ घंटों में केवल आहार और शयन का समय मेरा है, यदि कोई इस समय का उपयोग करना चाहे तो मैं इसे भी दे सकता हूं।" लोगों को जब वे आलस्य और अकर्मण्यता का जीवन जीते देखते तो उनका मानस उद्वेलित हो उठता । उनकी यह पीड़ा अनेक बार इन शब्दों में निकल पड़ती- 'जीवन के कीमती क्षणों आलस्य में खोना बहुत बड़ी निधि को हाथ से खोना है। जो लोग ऐसी जिन्दगी जीते हैं, उन्हें देखकर कई बार मन में आता है क्या ही अच्छा हो कि इनका समय मुझे मिल जाए क्योंकि मेरे पास इतने काम हैं कि दिनरात व्यस्त रहने के बावजूद भी वे आगे से आगे तैयार रहते हैं । ' २९९ कार्य के प्रति गुरुदेव की निष्ठा एवं लगन अवस्था के साथ भी कम नहीं प्रत्युत् वृद्धिंगत हुई। अंतिम समय तक अपने हर जन्म-दिवस पर वे अपने आपको तरोताजा अनुभव करते और बाल्यकाल की ओर बढ़ जाते थे । अवस्था के साथ मन को कुंठित करना या निष्क्रिय जीवन जीना उन्हें बिलकुल पसन्द नहीं था । इसीलिए वे अपने जीवन से जन-जीवन को प्रेरणा देते रहते थे। ये कथन उनके जीवट और फौलादी व्यक्तित्व की झांकी प्रस्तुत करते हैं 'लोग कह रहे हैं कि मैं सत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। मुझे लगता है कि कहीं यह मेरा सतरहवां वर्ष तो नहीं है क्योंकि मैं आज भी अपने आपको पूरी तरह से तरोताजा अनुभव कर रहा हूं। मुझमें उत्साह, स्फूर्ति, लगन व विकास की महत्त्वाकांक्षा अभी भी १७ वर्ष जैसी है । ' 'बहत्तरवें वर्ष में प्रवेश करने के बावजूद मुझे भरोसा है कि आज भी मेरी कार्यजा शक्ति में कोई कमी नहीं आयी है। मैं १८ घंटे बिना काम कर सकता हूं। रात को तीन घंटे नींद लेकर भी उठता हूं तो कभी नींद की पूर्ति करने की इच्छा नहीं रहती ।'
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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