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________________ २९६ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी चेतना को वे बार-बार झकझोरते रहते थे *"यदि ईश्वर ही किसी को उन्नत या सुखी बना सकता है तो संसार में कोई सुखी और कोई दुःखी क्यों? उसे तो सबको सुखी ही बनाना चाहिए था। भगवान् ही हमारे लिए सब कुछ करेंगे, हम कुछ भी क्यों करें? यह कायर व्यक्तियों की वाणी है। शक्तिहीन और विगतसत्त्व प्राणियों के लिए प्रभु तो क्या, कोई भी कुछ नहीं कर सकेगा।" *"कोई व्यक्ति यह सोचे कि मुझे कोई भी दूसरी शक्ति परमात्मा बना देगी, यह असंभव बात है क्योंकि परमात्मपद दिया नहीं जाता, पाया जा सकता है।" इसी प्रसंग में उनका यह उद्धरण भी क्रांतिकारी है- "मैं मनुष्य की खोज में निकला हूं। देवताओं का सहयोग मुझे नहीं चाहिए। लोग हर कार्य के लिए देवताओं का मुंह ताकते रहते हैं, क्या हमारे देवता इतने बेकार बैठे हैं कि वे हमारा कार्य करने के लिए दौड़े आएंगे। मेरा दृढ़ विश्वास है कि कोई भी देवता या परमात्मा स्वर्ग से हमारा कार्य करने नहीं आयेगा। धरती पर रहने वालों को ही परमात्मा बनना पड़ेगा।' मात्र ईश्वर के भरोसे बैठे रहने वाले लोग गुरुदेव की दृष्टि में स्वतंत्र नहीं अपितु यांत्रिक जीवन जीते हैं। एक बार गुरुदेव किसी क्लब में प्रवचन करने पधारे। प्रवचन-हॉल प्रबुद्ध लोगों से भरा था। प्रवचन के दौरान गुरुदेव ने क्लब के सदस्यों से प्रश्न किया- 'आप यंत्र हैं या स्वतंत्र? हॉल में बैठे प्रायः सभी लोगों ने एक स्वर से कहा- 'हम स्वतंत्र हैं।' पूज्य गुरुदेव ने पुनः प्रश्न किया- 'आप ईश्वरवादी हैं या आत्मकर्तृत्ववादी?' इस दार्शनिक प्रश्न को सुनकर वे एक बार सहमे और बोले- "ईश्वर में हमारी आस्था है, हम ईश्वरवादी हैं। पूज्य गुरुदेव ने अपना तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा- 'ईश्वरवादी होने का मतलब है ईश्वर के हाथ का खिलौना बनना। जो ईश्वर के खिलौने हैं, वे यंत्र हो सकते हैं. स्वतंत्र नहीं।' गुरुदेव के इस कथन ने सबको चौंका दिया और सब सोचने . को मजबूर हो गए। अकर्मण्यता अथवा मात्र याचना की बात यदि धार्मिक ग्रंथों में भी
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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