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साधना की निष्पत्तियां
* अणुव्रत जन-जीवन को चरित्रवान् बनाने का सक्षम माध्यम
· बना रहे, इसके लिए प्रयत्न करना। * प्रेक्षा ध्यान भाव-परिवर्तन की विशेष प्रक्रिया बनी रहे। * प्रगति सदैव मेरी सहगामिनी बनी रहे। * मैं जब तक रहूं, नए-नए स्वप्न संजोता रहूं और अतीत की
भांति उन्हें सफल देखता रहूं। * मैं अपनी मानसिक प्रसन्नता को सदैव प्रवर्धमान रखू। * मेरा समग्र धर्म-परिवार अध्यात्मनिष्ठा के क्षेत्र में गतिशील
रहे।
जन्मदिन पर ही नहीं, हर पट्टोत्सव एवं महावीर-निर्वाण दिन आदि विशिष्ट अवसरों पर भी वे भावी जीवन के लिए कुछ न कुछ संकल्प अवश्य ग्रहण करते थे। यहां उदाहरण स्वरूप दीपावली एवं पट्टोत्सव पर उनके द्वारा किए गए संकल्पों की एक झलक मात्र प्रस्तुत की जा रही है। लोग दीप जलाकर दीपावली मनाते हैं पर पूज्य गुरुदेव संकल्पों के दीप जलाकर दीपावली मनाते थे
* सप्ताह में एक एकासन करना। * ऐलोपैथिक दवा का प्रयोग नहीं करना। * प्रतिदिन आत्मालोचन करना। * दस हजार पद्य परिमाण नए साहित्य का स्वाध्याय करना। * किसी प्रसंग में आवेश आ जाए तो दीर्घश्वास का प्रयोग कर
- उसे अविलम्ब शान्त कर देना। '३०वें पट्टोत्सव के अवसर पर किए गए भावी संकल्प की रूपरेखा उनकी अतीन्द्रिय चेतना की स्पष्ट अभिव्यक्ति है- 'भविष्य में मैं योग साधना को प्रमुख स्थान देना चाहता हूं। चार ही तीर्थ को मेरा आह्वान है कि वे इस दिशा में विशेष प्रगति करें। मेरे विचार से आने वाले युग की श्रद्धा इस ओर विशेष केन्द्रित होने वाली है।'
अनुशासन वर्ष के उपलक्ष में मर्यादा महोत्सव के अवसर पर पूज्य गुरुदेव ने तीन संकल्प प्रस्तुत किए, जिनमें सम्पूर्ण मानवजाति का उज्ज्वल भविष्य प्रतिबिम्बित है