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साधना की निष्पत्तियां जन्मदिन को किसी विशेष रूप में परिवर्तित कर दिया जाए। इतने दिनों का चिंतन आज सक्रिय रूप में हमारे सामने आया है। आज का दिन आध्यात्मिक शिक्षा दिवस' के रूप में मनाया जा रहा है, इस बात की मुझे हार्दिक प्रसन्नता है। इस वर्ष जन्मदिन के उपलक्ष में गुरुदेव ने पिछले संकल्पों को दोहराते हुए तले हुए खाद्य पदार्थों तथा ११ द्रव्यों से अधिक न खाने का संकल्प ग्रहण किया।
१९६६ में ५३वें जन्मदिन पर बीदासर की वीरभूमि में पूज्य गुरुदेव ने इन चारों कार्यों की सम्पूर्ति का वज्र संकल्प ग्रहण किया
* साहित्य के अन्तर्गत आगम-संपादन। * समाजशुद्धि के लिए अणुव्रत आंदोलन का तीव्रगति से प्रचार । * साधना के विकास हेतु आसन, ध्यान, योग आदि। * समन्वय के क्षेत्र में जैन एकता के लिए प्रयास।
इन चारों कार्यक्रमों को तेजस्वी बनाने में मैं स्वयं अपनी शक्ति का नियोजन करूंगा और सम्पूर्ण संघ को भी इस दिशा में प्रेरित करूंगा।
सन् १९६७ में अहमदाबाद की उर्वर भूमि पर ५४वें बसन्त के उपलक्ष में गुरुदेव ने अपने अनुभवों को व्यक्त करते हुए कहा- '५४वें वर्ष में भी मैं ताजगी का अनुभव कर रहा हूं। यह ताजगी जीवन पर्यन्त बनी रहे और हम समन्वय की नीति को दोहराते रहें। हम जो करना चाहते हैं उसे दृढ़ता से करें, यह मेरी हार्दिक कामना है।' इस वर्ष गुरुदेव ने अग्रिम वर्ष के लिए पूर्व संकल्पों को ही दृढ़ता से पालन करने का संकल्प करते हुए दो संकल्प और जोड़ दिए
प्रतिदिन दो घंटे का मौन करना। * एक माला एक दृष्टि से फेरना।
५५वें वर्ष में प्रवेश करते हुए तमिलनाडु की राजधानी मद्रास में पूज्य गुरुदेव ने अपने संदेश में आत्मतोष व्यक्त करते हुए कहा- 'वर्ष पूरा करने का तात्पर्य है कुछ खो देना लेकिन मैंने तो इन वर्षों में पाया ही पाया है। स्वास्थ्य, शिक्षा, उत्साह आदि अनेक दृष्टिकोणों से देखता हूं तो मैं अपने आप में निश्चिंत हूं।' इस आत्मतोष की अभिव्यक्ति प्रतिक्षण