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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
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जागरूक और अप्रमत्त साधक ही कर सकता है तथा जो हर क्षण को जीता हो, उसमें से कुछ सार निकाल लेने की शक्ति रखता हो, वही इतने आत्मविश्वास के साथ अपने अस्तित्व को अभिव्यक्ति दे सकता है।
सन् १९६९ में ५६वें जन्मदिन पर बेंगलोर की सुरम्यस्थली में भावी वर्ष की कार्यनीति प्रस्तुत करते हुए गुरुदेव ने कहा- 'अब मैं बहुत अधिक यात्राएं न कर अपनी शक्तियों को केंद्रित करके अध्यात्म को तेजस्वी बनाने का कार्य करना चाहता हूं" यह संकल्प दीखने में छोटा और सामान्य लगता है पर इस हिमालयी संकल्प को करने वाला अमित मनोबली और आत्मदर्शी साधक ही हो सकता है।
५७वां जन्मदिन रायपुर की ऐतिहासिक धरती पर मनाया गया। रायपुर के अग्नि परीक्षा कांड में गुरुदेव श्री तुलसी अग्नि में स्वर्ण की भांति निखर कर जनता के सामने उभरे। विरोध की प्रचण्डता इतनी थी कि सामान्य व्यक्ति का मनोबल तो कभी का धराशायी हो जाता ।
५७ वें जीवन - बसंत के स्वर्णिम प्रभात में प्रदत्त ऐतिहासिक प्रवचन का कुछ अंश यहां प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे सामान्य सी बात पर प्रतिक्रिया करने वाले तथा तिल को ताड़ बनाने वाले मनोवृत्ति के लोग कुछ प्रेरणा ले सकें- 'आज मैं ५७वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूं। मेरा धर्मसंघ कई वर्षों से मेरा जन्मदिन मनाता आ रहा है पर इस वर्ष मुझे वह अधिक सुहावना लग रहा है। आज का प्रभात मेरे लिए नवीन संदेश लेकर आया है। कुछ ज्योतिर्विदों ने मुझे कहा है कि अब तक आपने जो प्रगति की है, वह तो भूमिका मात्र है, सही प्रगति का प्रारम्भ तो अब होगा। पर ज्योतिष में मेरा विश्वास कुछ भी नहीं है। मैं तो पुरुषार्थ में विश्वास करता हूं । पुरुषार्थहीन व्यक्ति की कोई देव भी रक्षा नहीं कर सकता। इस वर्ष हमें प्रकृति और पुरुष दोनों से मुकाबला करना पड़ा है। उड़ीसा से लौटते समय भयंकर बाढ़ का सामना हुआ, जिसकी स्मृति मात्र से रोमांच होता है। रायपुर में हम जिस विरोध का मुकाबला कर रहे हैं, वह भी विचित्र है । यह इतिहास की अनोखी घटना है। अभी तक हम महापुरुषों के संघर्षों की कहानियां पुस्तकों में पढ़ते थे, किन्तु आज हमारा संघ तकलीफों से गुजर रहा है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि कोई भी कठिनाई हमें विचलित नहीं कर