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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २८२ मिलनसारिता ४. निर्लेपता । गुरुदेव ने आगे अपनी बात जारी रखते हुए कहा - "मनुष्य आज तक कई मन चीनी खा चुका पर न तो उसके समान उज्ज्वलता आई और न वाणी में मधुरता। दूध में घुलकर जिस प्रकार चीनी तादात्म्य स्थापित करती है, वैसी मिलनसारिता आज कहां मिलती है ? इसके अतिरिक्त चीनी की सबसे बड़ी विशेषता है कि एक आधार में रहकर भी प्रत्येक दाना निर्लिप्त है।' विधायक भाव व्यक्ति में दूसरों के गुणों के प्रति अनुराग जगाता है। विशाल दृष्टिकोण के कारण वह बुराई में भी अच्छाई को खोज लेता है। पूज्य गुरुदेव का चिन्तन इतना ग्रहणशील था कि वे हर व्यक्ति, हर पदार्थ, हर स्थिति एवं हर घटना से एक नया बोध - पाठ ग्रहण कर लेते थे । ये वाक्यांश उनके ग्रहणशील विधायक व्यक्तित्व की जीवंत अभिव्यक्तियां हैं *मैंने अपने गुरुओं से कोरा सिद्धांत ही नहीं पढ़ा, मुझे उनके जीवन-व्यवहार से अहिंसा का सक्रिय प्रशिक्षण भी मिला। मेरे गुरु ने अभय और सहिष्णुता का विकास किया था, मेरे लिए वह सहज बोधपाठ बन गया । * मैंने अन्तर्दीप्ति से प्रज्वलित रहने का मंत्र भस्माच्छन्न अग्नि से सीखा है। * मैंने महिलाओं से बहुत कुछ सीखा है। स्वयं को देखने वाला ही विधायक भावों में रमण कर सकता है। दूसरों को देखने वाला विभाव में रमण करता है। वे कहते थे— 'किसने हमारे साथ कैसा व्यवहार किया, कौन कैसा व्यवहार करता है, कौन कैसा करेगा - ऐसे व्यर्थ चिन्तन न करके हम विधायक चिंतन करें कि हम कैसे हैं और हमें कैसा होना है ?' गुरुदेव तुलसी का यह सकारात्मक चिन्तन प्रत्येक व्यक्ति के चिन्तन को नया आयाम देकर सृजनोन्मुखी सोच को उत्पन्न करने वाला है। दृढ़ संकल्प साधक की शक्ति का स्रोत होता है- दृढ़ संकल्प - बल । आत्मानुशासन और संयम का विकास वही साधक कर सकता है, जिसका
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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