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साधना की निष्पत्तियां हो गए। उस समय अभिव्यक्त की गई अनुभूति उनके रचनात्मक एवं सम्यग् दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करने वाली है। बीमारी के तीन गुण हैं
* "पहला कभी-कभी बीमार हो जाने से मनुष्य का अहं दबता रहता है। उसे यह समझने का अवसर मिलता है कि मैं ही सब कुछ नहीं हूं। कुछ अज्ञात शक्तियां भी हैं, जो मनुष्य को परास्त कर सकती हैं अतः मुझे संभल-संभल कर चलना चाहिए।
* दूसरा बीमारी के समय बहुत थोड़े द्रव्यों को खाने से ही काम चल सकता है।
.. तीसरा हमेशा खाते ही रहने से मनुष्य के कलपुर्जे कुछ शिथिल पड़ जाते हैं । बीमारी में अल्प भोजन से उन्हें विश्रांति मिल जाती है और वे एक बार फिर कार्यक्षमता प्राप्त कर लेते हैं।"
विधायक भावों के कारण गुरुदेव सदा साम्ययोग में रमण करते रहते थे। चिन्तन की विधायकता उनको सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, निन्दाप्रशंसा आदि सब द्वंद्वों में सम रहने की प्रेरणा देती रहती थी। न वे कभी निराश होते और न ही कर्तृत्व के अहं से गर्वित ही होते। इस संदर्भ में उनका यह वक्तव्य पठनीय है- "मैं सारे संसार को सुखी बनाने की अति कल्पना नहीं करता तो कुछ नहीं कर सकने की हीनता भी मेरे मन में नहीं है। मैं हीनता और गर्व के बीच मध्यस्थता में रहना चाहता हूं।"
विधायक भाव जगाने में आशा और उत्साह का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गुरुदेव के मन का अमिट उत्साह अवस्था के साथ जुड़ा हुआ नहीं था। कोई जब उनके सामने कहता है कि मैं बूढ़ा हो गया हूं' तो तत्काल उसका प्रतिकार करते हुए वे कहते थे- “आदमी शक्ति का पुंज है। निराशा व्यक्ति को असमय में बूढ़ा बना देती है। आशावान् और उत्साही व्यक्ति सदा युवक बना रहता है।"
साधना के द्वारा उनकी दृष्टि इतनी निर्मल हो गयी थी कि उन्हें हर पदार्थ में अच्छाई ही दिखाई पड़ती थी। बीकानेर का घटना-प्रसंग है। गुरुदेव की दृष्टि अचानक चीनी पर पड़ी। गुरुदेव ने फरमाया- 'यद्यपि चीनी स्वास्थ्य के लिए उपयोगी नहीं है पर हमें हर चीज में अच्छाई ग्रहण करनी चाहिए। चीनी में चार गुण हैं- १. उज्ज्वलता २. मधुरता ३.