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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी २८० पुस्तक में पूज्य गुरुदेव कहते हैं- 'सबके मन में भय के साथ आश्चर्य का भाव प्रबल था पर गुरुओं की कृपा से उस विषम परिस्थिति में भी मेरा मनोबल मजबूत रहा। एक क्षण के लिए भी विचलित नहीं हुआ। मेरा एक भी प्रकम्पित नहीं हुआ क्योंकि मेरा चिन्तन विधायक था। मैंने कहा"जो हुआ है, अच्छे के लिए हुआ है। संदिग्ध अवस्था अच्छी नहीं होती । " ऐसी स्थिति में अनुशास्ता यदि निषेधात्मक भावों में चला जाए तो समय पर सही निर्णय लेना कठिन हो जाता है। नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण कुछ व्यक्ति सामान्य वेदना को भी अधिक मानकर उत्पीड़ित या तनावग्रस्त हो जाते हैं तथा अपने परिपार्श्व को भी अस्त-व्यस्त कर देते हैं । उन लोगों के लिए यह घटना प्रसंग प्रेरणा- दीप का कार्य कर सकता है। राजलदेसर चातुर्मास की परिसम्पन्नता पर गुरुदेव का स्वास्थ्य कुछ नरम हो गया । चतुर्विध संघ गुरुदेव के स्वास्थ्य को लेकर चिन्ता का अनुभव कर रहा था । सबके मन भारी थे । गुरुदेव ने सबकी बेचैनी का अनुभव किया और प्रेरणा देते हुए कहा'जो भवितव्यता है, वह होकर रहेगी। बिना मतलब चिन्ता का भार ढोकर तनाव या बेचैनी का अनुभव करना बुद्धिमत्ता नहीं है। व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए।' सन् १९६३ का घटना प्रसंग है। एक रात अचानक गुरुदेव के श्वास का प्रकोप बढ़ गया। घंटों बैठा रहना पड़ा । श्वास प्रकोप के कारण नींद नहीं आई इसलिए विहार में भी कठिनाई रही । उस समय का चिन्तन गुरुदेव ने अपनी डायरी में नोट किया- 'कत्तारमेवं अणुजाइ कम्म' कर्म कर्त्ता का अनुगमन करता है तथा कडाण कम्माण न अत्थि मोक्खो' – किए हुए कर्मों को भोगे बिना छुटकारा नहीं है, यह भगवद् वाणी है। इसके आधार पर किए कर्म भुगतने ही पड़ेंगे। चिन्ता करने से क्या होगा ? गुरुदेवः शरणम्' जब व्यक्ति दुःखद परिस्थिति को कर्मों का फल मान लेता है तो उसे वह परिस्थिति दुःखी नहीं बना सकती । इसके अतिरिक्त पूज्य गुरुदेव अत्यधिक वेदना एवं पीड़ा के क्षणों में भी चेतना के साथ संबंध बनाए रखते थे तथा उस बीमारी को निर्जरा एवं विनोद का साधन बना लेते थे। एक बार गुरुदेव तीव्र प्रतिश्याय से आक्रांत
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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